चिल्लाना आसान है, एक बार अवॉयड करके देखिए

चिल्लाना आसान है, एक बार अवॉयड करके देखिए

हम सभी लोग चाहें या ना चाहें, गुस्सा हमें आता ही है। हालांकि हममें से ज़्यादातर लोग ऐसा नहीं करना चाहते। बहुत सारे लोग इस दुनिया में मुझ जैसे ही हैं जो इस दुनिया में खुश रहने के लिए आते हैं। लेकिन क्या करें, जब गुस्सा आता है तो आ ही जाता है। हां, लेकिन एक चीज़ जो गुस्सा आने के बाद लोगों में देखी है, वो है कि कुछ लोग गुस्से में चिल्लाने लगते हैं। और बहुत बार तो ऐसा होता है कि गुस्सा आ किसी और पर रहा होता है यानी कि मूड खराब हो रहा होता है और वो गुस्सा किसी पर चिल्लाकर उतर जाता है। वो भी उस इंसान पर जिसकी एक मामूली सी गलती गुनाह बन जाती है।

सोचिए एक बार

हां, तो बात हो रही है गुस्से की, तो इसकी फिलॉसफी को थोड़ा गहराई में जाकर देखते हैं। आपने कभी देखा है कि हम किन लोगों पर चिल्ला रहे होते हैं? दो मिनट सोचिए ज़रा। चलिए आपको बताते हैंहमारी बेचारी इंडियन मॉम्स अपने ससुराल वालों पर जब गुस्सा होती हैं तो बच्चों पर चिल्लाकर जमकर अपनी भड़ास निकालती हैं। वहीं ऑफिस में अगर बॉस ने डांटा होता है तो सीनियर आदमी जूनियर पर या किसी ऑफिस बॉय पर गुस्सा निकाल रहा होता है। घर की बेचारी डोमेस्टिक हेल्प भी इस तरह के गुस्से की चिल्लाहट की शिकार बड़ी आसानी से हो जाती है। यानी कि अपने गुस्से की कुढ़न उन लोगों पर निकालते हैं जिन पर हमारा बस, या कह सकते हैं कि ज़ोर चलता है।

एक बार दर्शक के तौर पर

अगर पब्लिक प्लेस की बात करें, तो बहुत बार हम लोगों को चिल्लाते हुए देखते हैं। बहुत बार लोग पार्किंग एरिया में बहस कर रहे होते हैं। यहां तक कि अगर उन्हें अपनी पार्किंग स्लिप नहीं मिल रही होती तो भी कई बार उसकी शामत भी पार्किंग वाले पर ही आ जाती है। हम उस वक्त बड़े हैरान होते हैं कि "अरे भई, क्या गुस्सा करने की बात थी?" हम ही लोग सोच रहे होते हैं कि पता नहीं आजकल लोग इतने गुस्से में क्यों रहते हैं। सच है कि आजकल लोग बहुत ज़्यादा गुस्से में हैं और एक अजीब से बोझ के साथ ज़िंदगी को जी रहे हैं।

          लेकिन अगली बार जब कोई आपके सामने किसी बहुत मामूली सी बात पर गुस्सा करे, तो आप सिर्फ एक दर्शक के तौर पर तमाशा ना देखें, बल्कि यह एनालाइज़ करें कि आखिर चिल्लाते हुए लोग कैसे लगते हैं और वो खुद उस वक्त कितने स्ट्रेस में आ जाते हैं।

कुछ समय पहले की एक घटना का ज़िक्र करती हूं। ट्रैफिक जाम में हम फंसे थे, मैं रिक्शा में थी। तभी देखा कि एक बाइक वाला थोड़ी देर के लिए एक रिक्शे वाले से इस बात पर लड़ने लग गया कि उसके पैर पर रिक्शे का पहिया लग गया। यहां गौर करने की बात है कि पहिया सिर्फ टच किया था, उसे चोट नहीं लगी थी। लेकिन उसकी जो बहस थी, वो बड़ी भविष्यकाल में थीवो चिल्ला रहा था कि "अगर मुझे लग जाती तो? मेरा पैर टूट जाता तो?" और देखते ही देखते उसने अपनी बेल्ट खींची।

खैर, उसे मारने तो नहीं दिया गया, लोग बीच-बचाव में आगे आ गए। लेकिन मैं सिर्फ उस आदमी के तेवर दूर से बैठकर देख रही थी। गुस्से में उसका चेहरा लाल था। गुस्से की वजह से वो कांप रहा था। यहां तक कि जब वो अपनी बाइक के पास गया तो सिर पकड़कर बैठ गया। शायद गुस्से की वजह से उसे चक्कर आ गए थे। हालांकि बात इतनी बड़ी नहीं थी, उसे कोई चोट भी नहीं लगी थी। वो अवॉयड कर सकता था। लेकिन खैर....

अवॉयड करें

मैं यहां यह नहीं कह रही कि गुस्सा करना गंदी बात है, आपको गुस्सा नहीं करना चाहिए। आपको दूसरों की भावनाओं का ख्याल रखना चाहिए। आप किसी के बारे में ना सोचें, आप अपने लिए सोचिए, अपनी सेहत के लिए सोचिए। जब आप चिल्लाएंगे नहीं, अवॉयड करेंगे, तो आपको बहुत मुश्किल लगेगा। क्योंकि चिल्लाकर अपनी भड़ास निकालकर अपने दिल को हल्का करना बहुत आसान होता है। लेकिन जब आप अवॉयड करना शुरू करेंगे, तो आप धीरे-धीरे यह महसूस कर पाएंगे कि ज़िंदगी में जैसे कोई स्ट्रेस ही नहीं है।

सिचुएशन आप पर नहीं, आप सिचुएशन पर हावी होने लगेंगे। आप अपने काम पर ज़्यादा कंसंट्रेट कर पाएंगे, आपका फोकस बढ़ेगा। इसके अलावा आपके अंदर बहुत एनर्जी बनी रहेगी। सबसे बड़ी बातयह सभी काम आप अपने लिए, अपनी वेल-बींग के लिए कर रहे होंगे और लोगों के बीच में भी आपकी एक छवि बनती जाएगी। लोगों से आपको एप्रिसिएशन मिलेगा, लोग आपके साथ फ्रेंडली बिहेव करेंगे और हर एक आदमी जो एक खुशनुमा माहौल में जीना चाहता है, सुकून पाना चाहता है। वो सुकून आपको अपने अंदर और अपने आस-पास महसूस होगा। सच कह रही हूं, एक बार किसी सिचुएशन में जब आपको बहुत गुस्सा आ रहा हो, आप गुस्सा होकर चिल्लाने की जगह अवॉयड करिए।

इसका मतलब यह नहीं है कि आप अंदर ही अंदर घुटें, जो लोग आपके अपने हैं, उनकी कोई बात बुरी लगे तो उन्हें बातों-बातों में बताएं। शिकायत करना अधिकार है आपका, आपके अपनों से। लेकिन चिल्लाकर अपने रिश्तों को खराब करना कोई हल नहीं।

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