हम सब जो अपनी जिंदगी में पेरेंट्स बनते हैं और पेरेंट्स बनकर जब हम रिश्तों की और मोहब्बत की बारहखड़ी को समझते हैं। उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। बच्चे हमारी मोहब्बत तो होते ही हैं लेकिन वो हमारी जिम्मेदारी भी होते हैं। उन्हें अच्छा पढ़ाना लिखाना, उनकी फीस देना। उनके लिए कौन सा कॉलेज सही रहेगा और नहीं हम इन बातों में उलझे रहते हैं। हमें मज़ा भी आता है। कोई हमसे कुछ कहता नहीं है लेकिन कहीं ना कहीं हम अपने बच्चों की खुशी में ही खुशियां ढूंढने लगते हैं। और जब बात उनकी शादी की होती है तो वो चीज हमें एक पेरेंट होने के नाते यह अहसास करा देती है कि बच्चे अब बड़े हो गए और हम जिम्मेदारी से मुक्त हो गए। लेकिन शायद यहीं हम कुछ चूक जाते हैं।
उनका परिवार है
चाहे बेटा हो या बेटी हम सब इस बात को समझते हैं कि बच्चों की शादी हो जाती है तो वो बड़े हो जाते हैं। वो अपने बच्चों के साथ आगे बढ़ते हैं और उन्हें इस तरह बढ़ता हुआ देखना हमें पसंद होता है। लेकिन बच्चों को इस बात का अहसास कराइए कि आप उनके लिए हमेशा हैं। अगर वो परेशान हैं तो आपके साथ अपनी तकलीफें वो जब चाहें तब साझा कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि जिंदगी कोई फूलों का बाग़ है। उनकी जिंदगी में चुनौतियां आएंगी परेशानियां आएंगी। लेकिन वो परेशानियां इतनी ही होनी चाहिए कि वो उन्हें सुलझाना सीख पाएं। ऐसा ना हो कि वो उसमें उलझ कर रह जाएं और उन्हें उससे निकलने का कोई रास्ता नज़र ही ना आए।
रहने लायक बनाना है
हमारी बेटियां जो हमें अपने बेटों से भी प्यारी होती हैं। वो जब एक बार कहती हैं पापा तो उनके पापा उन पर अपनी जिंदगी निसार कर देते हैं। लेकिन जब हम अपनी बेटियों को रुख़सत करते हैं तो पापा की यही बेटियां बहुत बड़ी बन जाती हैं। जाहिर है कि बड़े होने के बाद आप पर कुछ जिम्मेदारियां आनी लाज़िमी हैं। जब बेटी अपने नए घर में जाती है तो उसे एडजस्ट करने में भी परेशानी आती है। उस वक्त उसे नए रिश्तों को समझने में और जानने में वक्त लगता है। वो कभी टूटती है, कभी रोती है, कभी उसे अपना पुराना घर याद आता है। यह बहुत नेचुरल बात है। लेकिन धीरे ही सही सयानी बेटियां उन घरों को रहने लायक बना लेती हैं। थोड़ी वो बदलती हैं और थोड़े उनके घरवाले। याद रखिए एक बात — एक नए आशियाने को बनाने में वक्त लगता है। बेटियों और बेटों को सीख दीजिए कि घर रहने लायक बनाएं। लेकिन उन घरों में आपकी बेटियां कभी खुश नहीं हो पातीं जिन्हें वो रहने लायक नहीं, सहने लायक बनाकर उनमें रहती हैं।
लौटने की गुंजाइश
आपकी चिड़िया जब अपना नया घर बनाने निकले तो उसे बताइएगा ज़रूर कि घर बनाना आसान नहीं होता। तिनका तिनका जोड़कर इंसान घर बनाता है। लेकिन जब वो एक घर से दूसरे घर में जाए तो विदाई के वक्त उसके कान में कहिएगा ज़रूर कि यह घर कल भी तुम्हारा उतना ही अपना रहेगा जितना आज से पहले। कभी तुम्हें लगे कि अब कुछ नहीं हो पा रहा तो लौटने की गुंजाइश हमेशा बनी रहेगी। तुम कल भी उतनी ही हमारी रहोगी जितनी आज हो।
अगर ऐसा हो पाया तो शायद आज जो लड़कियां अपनी ससुरालों में मर जाती हैं या मार दी जाती हैं उनमें कमी आएगी। वो बेबसी जो एक खराब शादी को घसीटने की होती है, कुछ भी हो रहा हो सभी कुछ सहने की होती है। उस घुटन में शायद कमी आएगी।
वो ज़िन्दा जनाज़ा नहीं है
एक बार मैंने किसी बुज़ुर्ग महिला को एक लड़की की रुख़सती यानी विदाई पर कहते सुना था कि लड़की की रुख़सत तो जिंदा जनाज़े की तरह है। वो अपने बहुत से रिश्तों को रुख़सत करके चली जाती है। वो अपने ही घर में पराई हो जाती है। मैंने उस महिला से तब कहा था कि नहीं ऐसा नहीं है। आप भी ऐसा ही कहिए। आवाज़ उठाइए उन सब बातों पर जो लड़की को यह अहसास कराए कि अब उसके पास कोई ऑप्शन बचा ही नहीं। मैं यह नहीं कह रही कि आप बेटियों के घर बसने ही ना दें। लेकिन ऐसा ना हो कि उस घर में रहती हुई आपकी बेटी जिंदगी के बीत जाने का इंतज़ार करने लगे। ऐसा ना हो कि घर बचाने के चक्कर में आप उसकी जिंदगी ना बचा पाएं। उसकी जिंदगी घर से ज्यादा ज़रूरी है।