डाकिया डाक लाया, खुशी का पयाम कहीं...

डाकिया डाक लाया, खुशी का पयाम कहीं...

हम 90 के दौर के बच्चे जिस वक्त में बड़े हुए हैं, उस वक्त में खतों का आना-जाना एक आम बात होती थी। जब बेटी दूर देस में ब्याही जाती थी, तो उसके पत्र में लिखे हुए एक-एक अक्षर को मां एक नहीं, सौ बार पढ़ा करती थी। "यहां सब ठीक है अम्मा, तुम कैसी हो?"बस इतना भर ही तो काफी हो जाता था एक मां के लिए। लेकिन खैर, वक्त गुजरा, टेलीफोन आए और टेलीफोन के बाद अब मोबाइल का जमाना ऐसा है कि आप चाहे सात समंदर पार हों या फिर सात मकान दूर रहते हों, वीडियो कॉल की वजह से अब कोई दूरी, दूरी ही नहीं रह गई है। लेकिन हां, वो खत और उनमें लिखी हुई जज़्बों की इबारत अब भी ज़ेहन में मौजूद है।

अब याद क्यों?

आपको लग रहा होगा कि अभी इन सभी खतों-किताबत के बारे में बात क्यों हो रही है? हां, इस बात को बयां करने की वजह है। दिल्ली के हैपनिंग एरिया माने जाने वाले सीपी में कल कुछ ऐसा ही हो रहा था। अपनी दोस्त से बहुत दिनों बाद मैं सीपी में मिल रही थी। वहां मेट्रो से उतरने के बाद उसे ढूंढने की एक जद्दोजहद चल रही थी। इसी बीच एक ब्लॉक से दूसरे ब्लॉक गुजरते हुए मैंने देखा कि कुछ एक्टिविटी हो रही है। मुझे लगा कि शायद वैलेंटाइन डे की वजह से कुछ हो रहा होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस जगह पर इस तरह की एक्टिविटी का होना एक आम बात है।

लेकिन नहीं, यहां तो कुछ और ही हो रहा था। एक डाकिया परफॉर्म कर रहा था "डाकिया डाक लाया"। इस गाने को गाने के बाद उसने कहा, "आप लोग तो अपनी ज़िंदगी में बहुत आगे बढ़ गए, लेकिन आपने कभी सोचा है कि आपकी ज़िंदगी में डाकिया क्या महत्व रखता है? वो लैटर्स में सिर्फ आपके अपनों का हालचाल ही नहीं, आपके अपनों की भावनाओं को भी समेटकर लाता था।" वहां खड़े लोग भी उसकी बातों में जैसे अपने किसी उस खाली भाव को ढूंढने की कोशिश कर रहे थे।

#ForeverInLetters

असल में इंडिया पोस्ट सर्विस ने लेटर लिखने की कला को फिर से जीवंत करने के लिए एक इनिशिएटिव लिया है #ForeverInLetters। इसके तहत इस एक्टिविटी का आयोजन किया गया था, जहां लेटर राइटिंग के बारे में बताया गया और लोगों को पत्र लिखने के लिए प्रेरित किया गया। अब इंसान चाहे आज के दौर में कितना भी मशीनी क्यों ना बन जाए, लेकिन जब भावनाओं का तूफान हिलकोरे मारता है ना, तो आंखें भर ही जाती हैं। एक अंकल ने अपनी दूर बैठी बुआ को पत्र लिखना शुरू किया। शुरुआत की "आदरणीय बुआजी, चरण स्पर्श" और वो लिखते-लिखते रो दिए। कहने लगे, "जैसे ही मैंने लिखा 'चरण स्पर्श', मुझे लगा जैसे मैंने सच में उनके पैर छू लिए और वो मुझे आशीर्वाद देती चली जा रही हैं। मुझे नहीं पता कि मैं क्या लिख पाऊंगा, लेकिन मैं जल्द ही उनसे मिलने जाऊंगा।"

आप भी हो सकते हैं इस पहल का हिस्सा

इंडिया पोस्ट के इस इनिशिएटिव में आप भी शामिल हो सकते हैं। इसके लिए आपको बस एक पत्र लिखना है और उसे पोस्ट करना है। इसमें उम्र की कोई सीमा नहीं है।

वैसे अगर देखा जाए तो इंडिया पोस्ट का यह एक बहुत अच्छा कदम है। आप भी अपने बच्चों को उनके प्रिय लोगों को पत्र लिखने के लिए प्रेरित करें। इसके ज़रिए अभिव्यक्ति और भाषा कौशल भी बेहतर होते हैं। वो भी समझ पाएंगे कि पत्र अपने आप में एक जादू का पिटारा होते थे। बस आपसे एक गुज़ारिश हैबच्चों को आज की डिजिटल दुनिया से जोड़े रखें, लेकिन उन्हें उस सुनहरे कल से भी जोड़कर रखें, जब शब्दों में भावनाओं की मिठास होती थी और खत अपनों का एहसास कराते थे।

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