मध्य प्रदेश का एक छोटा सा गांव है नौधा, वहां पर स्वतंत्रता दिवस पर हुई एक मामूली सी घटना ने सुर्खियां बटोर ली हैं। जो भी इस मामले को जान रहा है वो सोच रहा है कि क्या यह मामला वाकई इतना संगीन था कि शिकायतकर्ता ने अपनी बात सीएम हेल्पलाइन पर रख दी। इतना ही नहीं उसकी एक छोटी सी शिकायत से अधिकारी गण डर गए और उसे वो मिल गया जो उसे चाहिए था।
तो बात क्या थी
चलिए आपको बात बताते हैं। दरअसल स्वतंत्रता दिवस के ऊपर गांव के पंचायत भवन में झंडारोहण के बाद ग्रामीणों को लड्डू वितरित किए गए थे। कमलेश कुषवाहा को भी लड्डू दिया गया। लेकिन वो कहने लगा कि उसे एक नहीं दो लड्डू चाहिए। वहीं पर इस बात को लेकर उसकी लड्डू बांट रहे चपरासी के साथ बहस हो गई और मामले ने इतना तूल पकड़ा कि उसने सीएम हेल्पलाइन पर इस संदर्भ में शिकायत कर दी। पंचायत के सचिव रविंद्र श्रीवास्तव को इस संदर्भ में जानकारी मिली तो यह शिकायत उन्हें हैरान कर गई।
और मिल गए 1 किलो लड्डू
खुशी की बात है कि अब प्रशासन कमलेश को मनाने के प्रयास में है। कहां तो बात सिर्फ एक लड्डू की थी, वहीं अब उन्हें 1 किलो लड्डू दिए जाएंगे। अगर हम इस मामले को देखें तो यह बात सिर्फ लड्डू देने या ना देने को लेकर नहीं है। बात है अधिकार की और बात है यह जानने की कि आखिर चाहे छोटी हो या बड़ी अगर आपको शिकायत होती है तो प्रशासन उसका निराकरण किस तरह ढूंढता है। कमलेश ने भी यही किया। उसने लड्डू ना मिलने पर हेल्पलाइन नंबर पर तुरंत फोन लगाया। उसने जानकारी हासिल करनी चाही कि आखिर गांव वालों को 15 अगस्त के दिन लड्डू मिलने का अधिकार है या नहीं। और कह सकते हैं कि बात में कुछ दम ही होगा कि अब उसे 1 किलो लड्डू देकर मनाया जा रहा है।
नायक है कमलेश
कमलेश के बारे में यह बताया जा रहा है कि हेल्पलाइन पर शिकायत दर्ज करवाने का आदी है। अब तक वह सैकड़ों विभागों की शिकायतें सीएम हेल्पलाइन पर कर चुका है। जाहिर है कि वो जब शिकायतें करता होगा तो उसके आसपास के लोग भी उसे कोई सपोर्ट या मोटिवेट तो करते नहीं होंगे। जब लोगों ने सुना होगा कि उसने एक लड्डू की बात को लेकर शिकायत की है तो बहुत लोगों ने तो उसके मुंह पर ही बोला होगा कि अरे इतनी सी बात की शिकायत करने की क्या ज़रूरत थी? हमसे ही मांग लेता। भाई क्यों बखेड़ा कर रहा है, एक लड्डू कम खा लेता। बल्कि कहीं ना कहीं उसकी छवि यह बन गई होगी कि भई यह तो शिकायत करने का आदी है। लेकिन वो कहते हैं ना, जो अपनी धुन का पक्का होता है वो वही करता है जो उसे सही लगता है। लेकिन अब जब उसकी शिकायत पर प्रशासन ने संज्ञान लिया है तो लोग, जो उसे एक शिकायतकर्ता ही समझते होंगे, जान गए होंगे कि एक छोटी सी शिकायत कैसे ऊपर से नीचे तक एक सरकारी महकमे को हिला सकती है। आज एक छोटे से गांव का आदमी अपनी जागरूकता की वजह से ना केवल चर्चा में आ चुका है बल्कि बहुत से लोगों के लिए एक पाठशाला बनकर खड़ा है।
हम भी समझें
हमसे बहुत लोग भी शिकायतों को अपने साथ लेकर चलते हैं। उन बातों से हम उलझते रहते हैं। हमें लगता है कि जो जैसा है वो बस वैसा ही चलेगा। हम अक्सर कह ही देते हैं कि हमारे देश में कुछ नहीं बदलने वाला। लेकिन नहीं, इस मामले से हम सीख सकते हैं कि हमारी बात चाहे छोटी हो या बड़ी सुनी जा सकती है। बस हमें पता होना चाहिए कि हमें अपनी बात किस तक और किस तरह तक पहुंचानी है। हमारे सरकारी महकमे सोशल मीडिया पर भी मौजूद हैं। हम उनके ट्विटर हैंडल पर भी अपनी बात को साझा कर सकते हैं। रेलवे इसका बहुत बड़ा उदाहरण है। रेलवे के एक्शन लेने की न्यूज़ भी बहुत बार समाचार पत्रों में आती है। कहने का मतलब है कि हमें यह नहीं समझना चाहिए कि कुछ हो नहीं सकता। जाहिर है कि परेशानी है तो उसका समाधान भी होगा। और नहीं होगा तो हमें उसे ढूंढ निकालना होगा।
फिलहाल तो कमलेश जी को बधाई। हम उम्मीद करते हैं कि उन तक उनके लड्डू पहुंच चुके होंगे।


