अगर हम इस समय की पेरेंटिंग की बात करें तो वो एक अग्निपथ पर चलने जैसा है। बहुत अलग-अलग तरह की पेरेंटिंग की फिलॉसफी हमारे सामने मौजूद है। इसमें शैडो पेरेंटिंग, जेंटल पेरेंटिंग और न जाने कितनी और हमारे सामने मौजूद हैं। आजकल जो ट्रेंड चल रहा है वो जेंटल पेरेंटिंग का है, जिसमें हम अपने बच्चों के मान-सम्मान का पूरा ध्यान रखते हैं। चाहे हमें कितना भी गुस्सा क्यों न आ रहा हो, खुद को हमेशा तोल-मोल के बोलना पसंद करते हैं, उन्हें मारना तो दूर की बात उन्हें हर सिचुएशन में प्यार से समझाना हमारी जिम्मेदारी होती है।
वाह रे जेंटल पेरेंटिंग!
यह सब तो बहुत अच्छी बात है कि हमें अपने बच्चों को इज्जत देनी चाहिए, उनसे प्यार से बोलना चाहिए लेकिन अगर हम अपने बच्चों की इस पीढ़ी को देखें तो क्या वो पोलाइट और मर्यादित नज़र आती है? अरे भई हम मिलेनियम किड्स जो टाइगर मॉम्स के हाथों बड़े हुए हैं, हमें तो कई बार ‘यार’ जैसा एक छोटा सा वर्ड बोलने पर भी मार पड़ जाती थी। सॉरी, थैंक यू, प्लीज़ हमें रटा दिया गया था। बड़ों की इज्जत करनी चाहिए, जब बड़े बात कर रहे हों तो बीच में नहीं बोलते, बड़ों को उल्टा जवाब नहीं देते। यह एटिकेट्स की कुछ ऐसी बातें थीं जो बिना ट्रेंड के हमारे दिमागों में बस गई थीं। यह सब कुछ हमारे उन पेरेंट्स ने सिखाया था जो पेरेंटिंग के किसी भी साइकोलॉजिकल कॉन्सेप्ट को नहीं जानते थे।
तो चूक हो गई क्या?
लेकिन आज के बच्चे यह सभी कुछ जानते हैं। लेकिन फिर भी कुछ चूक सी होती हुई नज़र आ रही है। अब आपको लग रहा होगा कि अचानक से पेरेंटिंग के बारे में बात क्यों हो रही है। भई वो इसलिए हो रही है क्योंकि कौन बनेगा करोड़पति में एक बच्चा हॉट सीट पर बैठकर हाज़िरजवाबी के फेर में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के साथ वो बदतमीज़ी कर गया जो इंटरनेट पर सनसनी फैला रही है। यहां हम आपके साथ उन बातों का कोई ज़िक्र नहीं करेंगे क्योंकि आपने कहीं न कहीं रील में या किसी से इस मामले में बात सुन ही ली होगी।
मीडिया क्रिटिक विनीत की बात सुनिए
इस संदर्भ में जानते हैं कि मीडिया क्रिटिक विनीत इस बारे में फेसबुक पर क्या लिखते हैं—
केबीसी के जिस प्रतिभागी (बच्चे) की सोशल मीडिया पर चौतरफा चर्चा हो रही है और देश के प्रमुख हिन्दी-अंग्रेज़ी और भारतीय भाषा के प्रमुख समाचारपत्रों में इस पर आलेख प्रकाशित हो रहे हैं, क्या चैनल को नहीं पता होगा कि वो क्या करने जा रहे हैं?
केबीसी जैसे कार्यक्रम का प्रसारण से पहले कई स्तर पर संपादन से लेकर कानूनी पक्ष से लेकर तमाम दूसरे संदर्भों को लेकर जांच-परख होती है। एक शब्द और भाव-भंगिमा को कई-कई बार आगे-पीछे करके देखा-समझा जाता है। इस कार्यक्रम की लोकप्रियता का एक बड़ा कारण शालीनता, अमिताभ बच्चन की हिन्दी और मिलनसार रवैया रहा है।
ऐसे दौर में जबकि हर तरह के टीवी कार्यक्रम से लेकर इंटरनेट की सामग्री लोग अपने-अपने मोबाइल फोन-स्क्रीन पर देख रहे हों, केबीसी उन गिनती के कार्यक्रमों में से बचा है, जिन्हें आप बेहिचक पूरे परिवार के साथ बैठकर देख सकते हैं। पूरे परिवार के साथ देखने वाली बात यहां शामिल करना इसलिए ज़रूरी है कि शुरुआत से ही टीवी कार्यक्रमों की गुणवत्ता का एक बड़ा आधार परिवार के साथ बैठकर देखना रहा है। यह अलग बात है कि इतने सालों में परिवार भी तेजी से टूटा है और इसकी अवधारणा भी तेजी से बदली है। लेकिन पारिवारिक कार्यक्रम की इस मज़बूत छवि के बीच अचानक से ऐसा क्या हो गया कि एक ऐसा एपिसोड हमारे सामने आया और सब कुछ भरभराकर गिरने जैसा दिखने लगा!
लोगों ने आग्रह किया है कि बदतमीज़ी किए जाने के नाम पर बच्चे को ट्रोल न करें, जो कि ज़रूरी बात है। कुछ ने परवरिश किए जाने के तरीक़े को लेकर बात की और बड़े पैमाने पर बच्चे के रवैये पर तो आलोचना की ही है। इन सबके बीच पूरी बातचीत में छूट गया तो चैनल और उसके प्रोड्यूसर, निर्देशक और भारी-भरकम वो टीम जो छोटी से छोटी चीज़ पर कई-कई बार नज़र दौड़ाते हैं। इन दर्जनों लोगों की टीम के एक भी सदस्य को इसमें कुछ भी अटपटा नहीं लगा कि जिस अमिताभ बच्चन से इस शो की पहचान बनी है और जिनके अंदाज़ को देश के हजारों मीडिया अध्येता, सार्वजनिक मंचों पर बोलने-दिखने वाले लोग अपनाना चाहते हों, एक बाल प्रतिभागी पूरी उद्दंडता के साथ पेश आता है!
क्या इस भारी-भरकम टीम के जीवन में एक भी बच्चा नहीं है, बाल मनोविज्ञान की रत्तीभर भी समझ नहीं है कि इस एपिसोड के प्रसारण से क्या संदेश जाएगा और क्या असर पैदा होगा? आप जब इस सिरे से सोचना शुरू करेंगे तो चैनल और उसकी टीम के लोग बेहद क्रूर नज़र आएंगे और आप अंदाज़ा लगा पाएंगे कि ऐसा करके वो दरअसल समाचार चैनलों के पैटर्न को अपनाने की कोशिश में हैं। एक बार आप समाचार चैनलों पर होने वाली बहस से बदतमीज़ी और असहमति जताने के नाम पर लिहाज़ को ताक पर रख देने की बात हटा दें तो इसमें क्या बचता है?
दरअसल मौजूदा दौर के मीडिया में बदतमीज़ी और बेअदबी का पैटर्न इतनी तेजी से फल-फूल रहा है कि हर दूसरे-तीसरे कार्यक्रम में इसे आज़माने की कोशिश शुरू हो गई है। बदतमीज़ी ही कहने की प्रमुख शैली बन गई है, जिसमें वयस्क तो सालों से शामिल हैं ही, अब बच्चों को भी इसमें धकेले जाने की ट्रायल ली जा रही है। नहीं तो क्या मजाल है कि जिस अमिताभ बच्चन से दर्जनों बाल प्रतिभागी अपने दादाजी, स्कूल के प्रिंसिपल की तरह अदब और आत्मीय लगाव के साथ पेश आते रहे, उसी कार्यक्रम का ऐसा संस्करण हमारे सामने है!
मैं तो फिलहाल बच्चे के माता-पिता के सिरे से सोच रहा हूं कि जिस केबीसी में जाने के बाद बच्चे के माता-पिता पूरे उत्साह और सम्मान के साथ दुनिया के बीच पहचाने जाते रहे हों, उनके लिए कैसी स्थिति बन गई कि वो संभवतः अफ़सोस कर रहे होंगे। स्नेह और वात्सल्य ने सुविधाओं के बीच कैसी शक्ल ले ली है कि हमारे बच्चों के बीच से लिहाज़ के मायने ही गायब होते जा रहे हैं… चैनल की क्रूरता के आगे ये और डराने वाले संस्करण के साथ हमारे सामने है।
एक उद्दंड समाज की तैयारी
विनीत की यह बात सच में समझने की है। मेरी खुद की एक फ्रेंड केबीसी में जा चुकी है और उसने बताया था कि ‘सर’ यानी अमिताभ बच्चन के आने से पहले कंटेस्टेंट को उनसे मिलने की प्रैक्टिस करवाई जाती है। उनका ऑरा बहुत है। इस बात का भी लिहाज़ किया जाता है कि उनका टाइम ज़रा भी वेस्ट न हो। लेकिन फिर ऐसा क्या हो गया और यह चूक कैसी हो गई समझ से परे है। क्यों किसी को कुछ क्यों नहीं खटका। अगर ऐसा है तो शायद हम जेंटल पेरेंट्स एक उद्दंड समाज बनाने को तैयार हैं।