आजाद हुए हम लोगों को अब 65 साल से भी अधिक समय बीत चुका है, लेकिन क्या सही मायनों में हम अपनी बेटियों के सपनों को समाज की बेड़ियों से आज़ाद कर पाए हैं? क्यों उसकी ख़ुशियों की चाबी आज भी हमने एक अच्छे रिश्ते पर टिका रखी है?
ज़िन्दगी में कभी-कभी आपको बैचेन करने के लिए एक लफ्ज़ या एक जुमला ही काफी होता है। ऐसा ही एक जुमला सुनने को मिला। रील्स देखने की आदत है। रात को उंगलियां मोबाइल पर चल रही थीं। एक के बाद एक रील्स आ रही थीं। तभी एक रील ने चौंका दिया।
हुआ यूं कि कौन बनेगा करोड़पति में खान सर हॉट सीट पर बैठे थे। जैसा कि हमेशा होता है, अमिताभ बच्चन अक्सर कंटेस्टेंट से उनके जीवन के अनुभवों पर बातचीत करते हैं। उन्होंने बालिका शिक्षा के बारे में खान सर से चर्चा की। इसके जरिए शायद वह शिक्षा की स्थिति जानना चाह रहे थे।
उन्होंने पूछा कि बच्चियां किस तरह से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करती हैं? इसके जवाब में खान सर ने एक बच्ची का जिक्र किया और जो कहा वह रोंगटे खड़े करने के लिए काफी था। उन्होंने बताया कि एक बच्ची ने अपना सिर मुंडवा लिया। उससे जब पूछा गया कि ऐसा क्यों किया, तो उसने कहा, "सर, मुझे आगे पढ़ना था और घरवाले रिश्ता करवाने के पीछे पड़े थे। मान ही नहीं रहे थे। बस मैंने बाल मुंडवा लिए ताकि समस्या ही खत्म हो जाए।"
वह कहने लगे, "कौन कहता है कि सफेद कफन में ही मुर्दा सजता है, मैंने तो लाल जोड़े में लड़कियों के सपने को मरते देखा है।"
अच्छा घर और वर क्या जीवन का आधार है?
यह बात सच में कितनी हद तक सही है, हम जानते हैं। एक अभिभावक होने के नाते हम देखें तो कहीं न कहीं हर मां-बाप चाहते हैं कि उनके बच्चे सेटल हो जाएं। बेटी को एक अच्छा घर और वर मिले, तो बेटे को एक अच्छी नौकरी।
लेकिन कई बार जाने-अनजाने में ऐसी गलतियां हो जाती हैं, जिनकी भेंट बहुत से बच्चों के सपने चढ़ जाते हैं। एक अभिभावक होने के नाते आप सोचें, क्या केवल एक अच्छा घर और वर मिलना ही जीवन को जीने का आधार है? हो सकता है कि आपकी बेटी का जीवन को लेकर कोई उद्देश्य हो?
इसके अलावा, यह स्वीकार करना भी जरूरी है कि जीवन में कुछ बड़ा करने के लिए समय चाहिए होता है। प्रतियोगी परीक्षाओं को पार करने में कई बार दो से तीन साल लगना आम बात है। यह समय आप अपने बच्चे को दें।
शादी के बाद कर लेना
बहुत से लोगों को देखा है कि बेटी जब एक अच्छे रिश्ते पर करियर को तरजीह देती है, तो उसे यह उलाहना सुनने को मिलता है, "अब अपने घर जाकर करना जो भी तुम्हें करना है।"
वह सोचती है, "चलो कोई बात नहीं। बहुत लोग शादी के बाद करियर बनाते हैं। मैं भी कुछ तो कर ही लूंगी।" लेकिन शादी के बाद नई जिम्मेदारियां होती हैं। इनमें एडजस्टमेंट बैठाने में ही बहुत लड़कियों को समय लग जाता है।
जब तक वह कुछ करने का सोचती हैं, तब तक सपनों को पूरा करने का मौका या उनकी उम्र ही निकल जाती है। सभी लड़कियों के साथ ऐसा नहीं होता, लेकिन कमोबेश स्थिति कुछ ऐसी ही है।
तो फिर हल क्या है?
जीवन में हमेशा हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारे मां-बाप कभी गलत नहीं होते। बस जीवन को देखने का उनका और हमारा नजरिया अलग हो सकता है। जरूरत इस बात की है कि सपनों और शादी के बीच सामंजस्य बनाया जाए।
बहुत से घरों में देखा गया है कि लड़के वालों से पहले से बात कर ली जाती है। रिश्ता तय हो जाता है, लेकिन समय मांग लिया जाता है। जैसे, कई बार लोग अपनी बेटी की मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद ही उसकी शादी करते हैं।
वहीं, कई बार अगर शादी की जल्दी होती है, तो बेटी ससुराल लगभग नहीं जाती और मायके में रहकर अपने सपनों को पूरा करती है। एक निश्चित समय के बाद वह अपनी नई ज़िन्दगी में शामिल होती है।
यह तो दे ही सकते हैं
आप खुद सोचें, अगर बेटी कुछ पढ़ना चाहती है, कुछ बनना चाहती है, तो एक अभिभावक होने के नाते आपकी ज़िम्मेदारी क्या है?