यह मिलेनियल्स और Gen Z का ज़माना है। ऐसे में अक्सर कोई ऐसा नया शब्द कानों से टकराता है, तो उसके बारे में और अधिक जानने की उत्सुकता बढ़ जाती है। हाल ही में एक नया शब्द सुना ‘फेक वेडिंग’। सुनने में यह शब्द बहुत अटपटा सा लगा क्योंकि अब तक हमारी पीढ़ी के लिए विवाह समारोह का मतलब ऐसे आयोजन से होता था, जहां देवी-देवताओं को साक्षी मानकर वर-वधू अपने माता-पिता और स्वजनों की उपस्थिति में जीवन भर एक-दूसरे का साथ निभाने का संकल्प लेते हैं। यह मौका खुशी होता है, लिहाज़ा इसमें साज-सजावट, खाना-पीना, नाच-गाना और मौज-मस्ती का होना लाज़िमी है। इसीलिए अधिकतर लोग अपने परिवार या पास-पड़ोस में होने वाली किसी शादी का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। लेकिन यहां तो मामला एक नए कॉन्सेप्ट फेक वेडिंग का है।
तो क्या है फेक वेडिंग
जब गूगल पर इस नये ट्रेंड के बारे में सर्च किया और कुछ युवाओं से इस बारे में बातचीत की, तो यह मालूम हुआ कि आजकल महानगरों में फेक वेडिंग का चलन बढ़ रहा है। बिल्कुल असली शादी की ही तरह यह एक ग्रैंड इवेंट होता है, लेकिन इसमें दूल्हा-दुल्हन नहीं होते। ऐसे आयोजनों में कोई भी व्यक्ति एंट्री फीस जमा कराके डांस-म्यूज़िक और डिनर का पूरा लुत्फ़ उठा सकता है। आजकल अधिकतर युवा अपने दोस्तों के साथ ऐसी फेक वेडिंग में जाना पसंद करते हैं। इससे उन्हें वो शादी वाली वाइब भी मिलती है और यह आयोजन उन्हें स्ट्रेस-फ्री भी रखता है।
आखिर क्यों है ज़रूरत
अब सवाल यह उठता है कि लोगों के घरों में शादियां तो होती ही हैं, तो ऐसे में अलग से शादी जैसे किसी नकली इवेंट की ज़रूरत क्यों महसूस की जाने लगी? इसकी एक नहीं कई वजहें हो सकती हैं। सबसे बड़ी वजह यह कि आजकल विवाह का आयोजन काफी महंगा हो गया है। लोग अपने घर से बहुत दूर फार्म हाउस में विवाह समारोह का आयोजन करते हैं, या फिर डेस्टिनेशन वेडिंग का भी चलन बढ़ रहा है, जहां मेहमानों की संख्या बहुत सीमित होती है। अब लोग केवल अपने करीबी रिश्तेदारों और दोस्तों को ही आमंत्रित करते हैं। दूसरी ओर आजकल महानगरों में घर दूर अकेले रहने वाले युवाओं की तादाद तेज़ी से बढ़ रही है और उन्हें अपने एंटरटेनमेंट के लिए किसी ऐसे ठिकाने की ज़रूरत महसूस हो रही थी, जहां वे पूरी आज़ादी के साथ वेडिंग सेरेमनी के हर मूवमेंट को जी भर के एंजॉय करें, सेल्फी लें, वीडियो बनाएं और वहां रोक-टोक करने वाले रिश्तेदार भी न हों। इवेंट मैनेजमेंट के क्षेत्र से जुड़े लोगों ने युवाओं की इसी ज़रूरत को पहचानकर ‘फेक वेडिंग’ की शुरुआत की।
बजट फ्रेंडली भी है
ऐसे इवेंट्स का आयोजन आमतौर पर उन दिनों में होता है, जब शादियों का कोई मुहूर्त नहीं होता। इससे आयोजकों को कैटरर और बैंकेट हॉल के अलावा आयोजन से जुड़ी सारी चीज़ें सस्ते दरों पर उपलब्ध होती हैं। साथ ही, इस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को रोज़गार भी मिल जाता है। अन्यथा, ऑफ-सीजन में बैंड वाले, मेहंदी आर्टिस्ट और पगड़ियां बांधने वाले लोगों के पास कोई काम नहीं होता। इस दृष्टि से यह एक अच्छा प्रयास है। एक ओर जहां कुछ लोगों के लिए यह फुल ऑन एंटरटेनमेंट का ज़रिया बन रहा है, वहीं बहुत से घरों के चूल्हे भी इससे जल रहे हैं।
एक दूसरा पहलू भी
खैर, यह तो हुई बाज़ार से जुड़ी बात जहां व्यवसायी वर्ग अपने कारोबार के विस्तार के लिए नए अवसर ढूंढ रहा है, लेकिन हमें इसके सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू पर भी गौर करना चाहिए। क्या आज महानगरों में रहने वाले लोगों, खासतौर पर युवाओं के सामाजिक जीवन का दायरा इतना सीमित हो गया है कि वे फेक वेडिंग जैसे इवेंट्स में अपने लिए खुशियां तलाश रहे हैं? यहां मुद्दा किसी के सही या ग़लत होने का नहीं है, पर इससे हमारे मन में यह सवाल ज़रूर उठता है कि क्या बड़े शहरों में रहने वाले लोग इतने अकेले और आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं कि उन्हें अपनी बोरियत दूर करने के लिए फेक वेडिंग जैसे इवेंट्स का सहारा लेना पड़ रहा है। यह सोचने की बात है। खैर अच्छी बात इसमें यह है कि जेन ज़ी को अपनी खुशियों की गली का पता ढूंढ़ना आता है।
(वरिष्ठ पत्रकार विनिता सिन्हा की वॉल से साभार)