मां ने ये नहीं सिखाया, मां ने वो नहीं सिखाया या मां ने कुछ नहीं सिखाया। आपने कभी न कभी ये जुमले अपने आस पास सुने ही होंगे। अगर नहीं सुने तो बीते दिनों बिग बॉस में कुनिका के जरिए पूरे देश ने सुने। अगर आप बिग बॉस के फैन हैं तो आप जानते होंगे कि मैं किस मामले में बात कर रही हूं। यदि आप नहीं जानते तो बता दूं कि बीते दिनों बिग बॉस के घर में कुनिका सदानंद ने तान्या मित्तल को सब्जी न काट पाने पर यही ताना मारा। उन्होंने तान्या को खीरा न छील पाने की बात पर कहा कि तुम्हें मां ने ये भी नहीं सिखाया। भले ही बिग बॉस में इस बार कुनिका के कहने के बाद पूरे घरवाले इस बात को गलत ठहराते नजर आए। लेकिन ये सच है कि समाज में अगर बच्चे कुछ करने में नाकाम होते हैं या बच्चों के व्यवहार के लिए भी मां को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है। बच्चों के काम के लिए मां को आंकना कितना सही है और मां ही क्यों सबकुछ सिखाने के लिए जिम्मेदार है।
मां पहली गुरु जरूर है लेकिन सीखते समाज से भी हैं
बच्चा जब इस दुनिया में आता है तो उसका पहला आशियाना मां की बाहें और आंचल होता है। फिर चलने से लेकर बोलना और खाने से लेकर जीने की दूसरी कलाएं की पहली सीख मां ही देती है। लेकिन बड़ा होता बच्चा मां की सीख को कितना अमल करता है वो खुद उस बच्चे पर निर्भर करता है। यही नहीं मां की सीख के साथ साथ बच्चे अपने घर के माहौल और आस पास वातावरण से भी बहुत कुछ सीखते हैं। सिर्फ मां ही नहीं है जो बच्चों को सबकुछ सिखाती है। अक्सर बच्चे घर में अपशब्द बोलते नजर आते हैं जो मां नहीं बल्कि घर के अन्य सदस्य या आस पास के लोग बोलते हैं।
छोटे बच्चे मां से तो बड़े होते बच्चे पिता से सीखते हैं
क्या आप जानते हैं कि दस साल से कम उम्र के बच्चे मां के काम करने के तरीकों से सीखते हैं। एडोलसेंस और टीनएज में बच्चे अपने पिता, आस पास के माहौल और दोस्तों से सीखते हैं। साइकोलॉजी के अनुसार बच्चों के व्यवहार में ज्यादातर पिता के व्यवहार की झलक देखने को मिलती है। पिता किस तरह किसी सिचुएशन को संभालते हैं। घर में रहने वाले पुरूष अगर घर के कामों में हाथ बटाते हैं तो बच्चे भी उन्हें देख वो काम करने के लिए आगे आते हैं। लेकिन अगर घर में काम करने की जिम्मेदारी सिर्फ महिला की ही होती है तो फिर चाहे लड़कियां हों या लड़के वे इन कामों को करने में निपुण तो दूर रूचि भी नहीं रखते।
खुद व्यक्ति की जिम्मेदारी होती है सीखने की
मां की अच्छी सीख देने के बाद भी बच्चे बहुत कुछ ऐसा करते हैं जो उन्हें सिखाया नहीं जाता। तो सवाल ये उठता है कि बच्चों के कुछ कर पाने और न कर पाने के लिए मां क्यों जिम्मेदार ठहराई जाती है। जहां तक बात है किचन के काम करना आना और न आना, इसको कुछ इस तरह से भी समझ सकते हैं। संजीव कपूर या दूसरे अन्य बड़े शेफ जब खाना पकाने की कला सीख रहे थे। उस दौर में लड़कों का घर के काम करना बुरा माना जाता था। लेकिन ये उनका व्यक्तिगत चुनाव था और उनको ये करने में मुश्किलें भी आईं। लेकिन उन्होंने उस काम में महारथ हासिल की। ठीक इसी तरह जब लड़कियों के लिए पढ़ना और घर से निकलना मुश्किल था। उस दौर में चुनौतियों के बाद उन्होंने ऐसे क्षेत्रों में महारथ हासिल की जो घर में कोई उन्हें सिखाने वाला नहीं था। तो ये बात कहना गलत नहीं है कि ये व्यक्ति की खुद की पसंद और जिम्मेदारी है कि वो क्या सीखता है और क्या नहीं।
ऐसे न जाने कितनी ही बातें हैं जो ये साबित करने के लिए काफी हैं कि दुनिया में लोग जो भी सीखते और करते हैं वो उनकी खुद की जिम्मेदारी है। मां किसी को भी सबकुछ सिखाने और समझाने के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकती।