कूच बिहारी की राजकुमारी और जयपुर का राजा? क्या आप सुनना चाहते हैं वो राजा-रानी वाली प्रेम कहानी

कूच बिहारी की राजकुमारी और जयपुर का राजा? क्या आप सुनना चाहते हैं वो राजा-रानी वाली प्रेम कहानी

आज वैलेंटाइन डे है। अंग्रेज़ी की वो कहावत इस समय चरितार्थ हो रही है – "Love is in the air." तो चलिए, जब माहौल प्यार का है, तो आपको भी एक ऐसी ही प्रेम कहानी सुनाते हैं जो राजमहलों की है। यह कहानी है जयपुर के राजा सवाई मानसिंह द्वितीय और कूच बिहार की राजकुमारी गायत्री देवी की। महारानी गायत्री देवी ने अपनी बुक "द प्रिंसेस रिमेंबरेंस" में इस कहानी का ज़िक्र किया है।

12 साल की उम्र में हो गया था प्यार

गायत्री देवी की बात करें तो उनकी मां इंदिरा देवी एक खुली विचारधारा वाली महिला थीं और उन्होंने अपने बच्चों की परवरिश भी इसी विचारधारा के साथ की थी। गायत्री देवी का जन्म 1919 में लंदन में हुआ था। उनकी पढ़ाई-लिखाई का बहुत सा हिस्सा लंदन में ही गुज़रा। उनकी मां ने फैमिली एस्टेट में जयपुर के महाराजा को आमंत्रित किया था। यहीं गायत्री देवी की पहली मुलाकात हुई। अपनी बुक "प्रिंसेस रिमेंबरेंस" में वे लिखती हैं कि वो पहली बार में ही उनके प्रति आकर्षित हो गई थीं। राजा सवाई मानसिंह द्वितीय पोलो के बेहतरीन खिलाड़ी थे। पोलो की वजह से दोनों की मुलाकातों का सिलसिला चल निकला। हालांकि, दोनों के परिवार इस शादी का विरोध कर रहे थे, लेकिन फिर सभी कुछ सही हुआ और दोनों का विवाह हुआ।

"मेरे बाद कोई नहीं"

गायत्री देवी की मां इंदिरा देवी को भी इस शादी से ऐतराज़ था। जब 14 साल की उम्र में गायत्री देवी ने अपनी पसंद के बारे में बताया था, तो उन्होंने इस बात को बिल्कुल भी संजीदगी से नहीं लिया था। उन्हें इस बात से भी ऐतराज़ था कि जयपुर के महाराज और उनकी बेटी में उम्र का काफी फ़ासला है। उन्होंने यह भी कहा था "वो पहले से शादीशुदा हैं, आप उनकी तीसरी पत्नी बनोगी।" इस पर गायत्री देवी ने अपनी मां से कहा था – "हां, मुझे मालूम है कि मैं तीसरी पत्नी बनूंगी, लेकिन मुझे यह भी मालूम है कि मेरे बाद कोई और नहीं आएगी।" गायत्री देवी की इस बात से हम समझ सकते हैं कि उन दोनों के बीच में कितना खूबसूरत बॉन्ड रहा होगा। यह बात सच भी साबित हुई। दोनों ने एक-दूसरे के साथ एक खूबसूरत ज़िंदगी बिताई।

उस प्रेम को निभाया भी

राजा मानसिंह द्वितीय के साथ गायत्री देवी शादी के बाद पोलो खेलती थीं, घुड़सवारी करती थीं। उन्होंने सिर्फ राजा को ही अपने पति के तौर पर क़ुबूल नहीं किया बल्कि उनके साथ उस शहर को भी अपनाया। उन्होंने जयपुर में लड़कियों के लिए पहले इंग्लिश स्कूल "एमजीडी" की स्थापना आज़ादी से पहले कर दी थी। वे चाहती थीं कि राजस्थान की लड़कियां पढ़ें। वे खुद घर-घर जाकर लोगों को प्रोत्साहित करती थीं कि वे अपनी बेटियों को स्कूल भेजें। इसके पीछे उनकी मंशा थी कि लड़कियां आगे बढ़ें। उन्होंने इसके लिए लिलियन जी लुटर को पहली प्रिंसिपल बनाया। वे एक ब्रिटिश शिक्षाविद थीं। यह भारत का पहला पब्लिक गर्ल्स स्कूल था, जो ब्रिटिश पैटर्न पर शुरू हुआ था। इस स्कूल को आगे बढ़ाने में महारानी गायत्री देवी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। यह स्कूल आज भी जयपुर में है।

जयपुर की महारानी की यादें

राजा मानसिंह द्वितीय के देहांत के बाद भी उन्होंने इसी शहर में अपनी ज़िंदगी बिताई। साल 2009 में उनका देहांत भी जयपुर में ही हुआ। अगर उन्होंने जयपुर को प्यार किया था, तो जयपुर वालों ने भी अपनी महारानी को नम आंखों से विदा किया। वो एक महारानी की खूबसूरत विदाई थी। जब वो विदा हो रही थीं, तो लग रहा था जैसे पूरा जयपुर उन्हें विदा करने आया है।

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