मैं जलेबी, बकलावा से नहीं शिकायत, गिला है तो अपनों से

मैं जलेबी, बकलावा से नहीं शिकायत, गिला है तो अपनों से

हम लोग अपनी सेहत को लेकर अब बहुत ज्यादा अवेयर हो चुके हैं, इतने कि अपनी प्यारी मीठी चीज़ों को खाने से अब ज़रा गुरेज़ करने लगे हैं, इसमें जलेबी का नाम भी शामिल है। ऐसे में हमारी प्यारी गर्मागर्म जलेबी हमसे कुछ ख़फ़ा तो जानते हैं इस टेढ़ी जलेबी की शिकायती दास्तां उसकी ही ज़ुबानी ।

हां तो भैय्या मैं यह कहना चाह रही थी...

अच्छी बात है अपनी सेहत को लेकर आपको जागरुक होना चाहिए। अब मेरा वो पुराना दौर तो वापिस नहीं आ सकता जब लोग कढ़ाही के पास खड़े होकर गर्मागर्म जलेबी ना जाने कितनी खा जाते थे। आज के लोग तो भई अपने आप में कैलोरी मीटर हैं। वो अपनी टेस्ट और मन के अनुसार नहीं बल्कि अपनी कैलोरी कंजम्शन के हिसाब से मुझे खाने लगे हैं।

लेकिन लेकिन लेकिन...

मैं भी इस नए ज़माने के साथ खुश थी कि चलो भई ज़माने की जो हवा चल रही है उसमें खुश रहना सीखो। लोग हफ्ते में एक दिन चीट डे पर ही मुझे याद कर लेते हैं यही क्या कम है लेकिन मेरी आंख तो तब फटी की फटी रह गई जब मुझे बकलावा नाम की विदेशी मिठाई के बारे में पता चला। वो तो उस दिन मैं पूरी रात फ्रिज में बकलावा जी के डिब्बे में ही रख गई थी। तब पता चला कि भाई बकलावा हैं क्या चीज।

यह फर्क क्यों...

मैं देख रही हूं बकलावा भाई बाहर से आए थे। उनकी पैकिंग कुछ अलग थी। खैर हम दोनों में एक चीज़ जो कॉमन थी वो यह कि हम दोनों ही मैदे से बनते हैं और मिठास हम दोनों ही गज़ब की होती है। लेकिन मैं क्या देखती हूं कि बकलावा भाई की फैन फॉलोइंग घर में बड़ी ही अच्छी थी। एक दिन में ही वो फ्रिज से बाहर निकल गए और मैं उस डिब्बे में पड़ी सूखती रही और हां इन दो चार दिनों में वो सब पता चला जो मेरे दिल को दुखा गया।

कैलोरी का ड्रामा...

इस दौरान मुझे पता चला कि एक अजीब सी सोच चल रही है। ऐसा लगता है जैसे हम देसी मिठाईयों के खिलाफ ही जैसे कोई साज़िश है। वो दिन बीत चुके हैं जब घर में खाने के बाद कुछ मीठा खाने का रिवाज था लेकिन फिर यह चॉकलेट, पेस्ट्री, केक भी तो नुकसान ही करते हैं कैलोरी से भरपूर होते हैं। उन्हें चुपके चुपके क्यों खा लिया जाता है?

बकलावा को ही देख लें...

अब बात करती हूं मैं बकलावा कि मीठे से भरपूर बकलावा मैदे से बनता है और इसमें खूब सूखे मेवे भी पड़ते हैं। बस यह बेक होता है और मैं फ्राई होती हूं। लेकिन क्या करें कि अब तो लोगों ने देसी मिठाईयों के लिए लोगों की सोच ही ऐसी बना दी कि इन्हें खाना जैसे गुनाह है।

बात पते की...

मैं वो मीठा हूं जो बहुत सालों से हिंदुस्तान में है। सेहत के लिए सिर्फ मैं या मेरी जैसी देसी मिठाईयों को गुनहगार ठहराना काफी नहीं है आप अपनी जीवनशैली बदलिए। पहले के लोग अपने दिल का खाते थे। लेकिन उनकी जीवनशैली कुछ ऐसी होती थी कि वो जो खाते थे उन्हें लगता था। वो मिलबांट कर खाते थे। अगर आप पावभर जलेबी अपने दोस्तों के साथ मिलकर खाएंगे तो आप खुद ही सोचिए कि आपके हिस्से में कितनी आएंगी। अपनी ज़िन्दगी से देसी मिठाईयों को खारिज कर देना समझदारी नहीं है। आगे आपकी मर्ज़ी ।

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