शादी सच में फेयरीटेल नहीं होती, इसमें कोई जिन्न तो होता है जिससे लड़ना होता है

शादी सच में फेयरीटेल नहीं होती, इसमें कोई जिन्न तो होता है जिससे लड़ना होता है

अगर हम इस समय अपने आस-पास के समाज का माहौल देखें तो शादी को लेकर लोगों में एक अजीब सा डर देखने को मिल रहा है। हम मिडिल क्लास लोग हैं जहां शादी होने का मतलब होता था कि शादी की है तो उसे निभाना है, लेकिन अब हमारे आस-पास भी लोग मिल जाएंगे जिनकी शादी में कुछ ना कुछ प्रॉब्लम चल रही है। कोई शादी टूट रही है, कुछ लोग सेपरेट हो रहे हैं। वहीं कुछ लोग सोच रहे हैं कि क्या फायदा ऐसी शादी में, इससे अच्छा अलग हो जाओ। कुल मिलाकर शादी को लेकर एक ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। यहां तक कि हाई पैकेज पाने वाले बैचलर्स शादी करना ही नहीं चाह रहे कि कहीं यह उनके लिए सिरदर्द ना बन जाए। सिर्फ लड़कियां ही नहीं, बहुत लड़के भी अब डिप्रेशन का शिकार हैं, यहां तक कि एक नाकाम शादी की वजह से सुसाइड करने के भी कदम उठाए जा रहे हैं।

छोटी बातों को तूल

मैं जब भी किसी नाकाम शादी के इस तरह के किस्से पढ़ती या सुनती हूं तो दिल में अजीब से सवाल खड़े होने लगते हैं। चलिए यह तो खैर बहुत नेगेटिव बात है कि कोई अपनी शादी से इतना दुखी हो कि वो सुसाइड ही कर ले। इसमें तो मैं यही समझती हूं कि जिंदगी को खत्म करने से बेहतर है कि आप उस रिश्ते को खत्म कर लें। लेकिन हां, बहुत छोटी-छोटी बातों को तूल देकर रिश्ते को खत्म करना भी कोई समझदारी नहीं है।

जैसे कि मैं हाल ही का एक किस्सा बताती हूंहमारे घर के पास रहने वाली एक लड़की जिसकी शादी को छह महीने ही हुए हैं, लेकिन वो तीन महीने से वापस अपने घर आ चुकी है। शायद अब मामला तलाक तक भी पहुंच गया होगा। इस अलगाव की वजह है चावल। असल में लड़की बचपन से बासमती चावल खाती आई है। शादी होकर वह एक ऐसे घर में गई जहां टूटे चावल बनते हैं। उसने अपना यह दुख घर पर बताया और मां-बाप अपनी बेटी को वापस घर ले आए। अब उसकी मां पूरे मोहल्ले में कहती फिर रही हैं कि ऐसे लोगों के यहां तो अपनी बेटी थोड़ी भेजेंगे जो हमारी बेटी को उसके दिल का खाना भी नहीं खिला सकते। हम पर बोझ थोड़ी है हमारी बेटी। अब क्या वो अपनी मर्जी का भी नहीं खाएगी?

          मैं यहां यह नहीं कह रही कि वो लड़की या उसके घरवाले सही हैं या गलत हैं। मैं सिर्फ यह जानने की कोशिश कर रही हूं कि क्या चावल एक ऐसा टॉपिक था जिसकी वजह से तलाक हो रहा है?

फिर याद आया दुर्रे-ए-शहवार

एक तरफ जहां यह सभी चीजें हो रही हैं, वहीं मुझे याद आया एक पाकिस्तानी सीरियल दुर्रे-ए-शहवार। यह सीरियल एक ऐसी लड़की की कहानी है जो एक खराब शादी में रहकर अपने हालातों से जंग लड़ती है और उन पर विजय भी पाती है। इस सीरियल में एक डायलॉग है कि शादी कोई फेयरीटेल नहीं होती। और अगर होती भी है तो इसमें कोई ना कोई जिन होता है जिससे जंग लड़नी पड़ती है।

अगर हम प्रैक्टिकल ऐस्पेक्ट पर देखें तो शादी इतनी आसान होती भी नहीं जितनी लगती है। हम सब लोग जो शादीशुदा हैं, जानते हैं कि शादी जैसे-जैसे मैच्योर होती जाती है, उसमें अंडरस्टैंडिंग और प्यार भी बढ़ता जाता है।

सिर्फ लड़की नहीं, लड़कों के लिए भी

यह आज के जमाने के लोग हैं। अच्छी बात है कि लड़कियां अपने हकों के लिए अवेयर हैं। इस बात से भी मैं पूरी तरह सहमत हूं कि घर को बनाए और बचाए रखने की जिम्मेदारी सिर्फ लड़की की नहीं होती। अब आजकल के लड़कों को भी बदलना होगा। लड़का और लड़की दोनों अपने घर को मिलकर बनाएं और बचाएं।

आप इस बात को याद रखें कि शादी में कुछ प्रॉब्लम चल रही है तो इसे तोड़ना बहुत आसान है, आप कर सकते हैं। लेकिन आप एक बताइएक्या हर चीज का हल तोड़ना होता है? बहुत सारी बातों को दरगुज़र किया जाता है और किया जा सकता है। आप इसको इस एग्जाम्पल से समझ सकते हैं कि अगर हमारे पैर में दर्द होता है तो हम पैर को काट थोड़ी देते हैं। हम उसका इलाज करते हैं, कोई दर्द की दवा खाते हैं। हां, अगर वो नासूर बन जाता है तभी उसे काटा जाता है। यह बात आपके रिश्ते पर भी लागू होती है।

हर रिश्ता कुछ समझौते मांगता है

खैर, बात दिल में आई तो कह दी। आप डेमोक्रेसी में रहते हैं, समझदार हैं। ऐसा भी नहीं है कि आप खुद को एक बेकार शादी के हवाले कर अपना जीवन बर्बाद कर लें। लेकिन हां, वो बहुत छोटी बातें जिन्हें आप इग्नोर कर सकते हैं, आप उन्हें इग्नोर करें। कहीं ऐसा ना हो कि आपको आगे चलकर अपने जीवन में बहुत पछताना पड़े। ऐसा इसलिए क्योंकि चाहे रिश्ता कोई भी क्यों ना हो, हर रिश्ते में कुछ ना कुछ समझौते तो आपको करने ही होते हैं।

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