नए साल पर याद आते हैं वो पुराने हाथ से बने ग्रीटिंग कार्ड

नए साल पर याद आते हैं वो पुराने हाथ से बने ग्रीटिंग कार्ड

वक्त का पहिया बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। 90 के दौर में जिसमें हम बड़े हुए हैं अगर उस दौर को पीछे मुड़कर देखते हैं तो लगता है जैसे जिंदगी का सुनहरा दौर आज भी वहां किसी आराम कुर्सी पर बैठा हुआ मुस्कुरा रहा है। उस दौर में भी नए साल को लेकर नई चीजों को लेकर एक्साइटमेंट कम नहीं होता था। अक्सर उस वक्त में 25 दिसंबर से 31 दिसंबर तक सर्दियों की छुट्टियां हुआ करती थीं। और यह पूरी छुट्टियां सर्दियों की गुनगुनी धूप में अपने हाथ से ग्रीटिंग कार्ड बनने में निकल जाया करती थीं। 1 जनवरी को जब हम स्कूल जाते थे उस वक्त सबसे पहले अपनी फेवरेट टीचर और बेस्ट फ्रैंड को मोहब्बत की चाशनी में डूबा हुआ कार्ड दिया करते थे। यह कार्ड दरअसल हमारे इमोशंस की एक बानगी होता था।

वो शेरो-शायरी

उस दौर के कार्ड को अगर हम आज भी देखते हैं तो उनमें कुछ अजीबो-गरीब शेरो-शायरी आज भी नज़र आती हैं जैसे एक कप व्हिस्की, एक कप बीयर, ओ माय डियर, हैप्पी न्यू ईयर...और भी न जाने क्या-क्या, जो फिलहाल मुझे याद भी नहीं आ रही। बेशक क्वालिटी के हिसाब से देखा जाए तो यह बहुत अच्छी नहीं थीं। लेकिन बच्चे अपने जानिब से कुछ तुकबंदियां किया करते थे। वहीं कुछ बच्चे बहुत क्रिएटिव होते थे। वो इस तरह की तुकबंदियों में अपने जज़्बात का इज़हार करते थे। इसके अलावा, वो अल्फ़ाज़ों के साथ खेलना बख़ूबी सीख जाया करते थे। उस वक्त घरों में एक अदब का माहौल हुआ करता था। इस वजह से बच्चे ऐसा कर पाते थे।

क़द्र करना सिखाया

इस तरह के कार्ड जिन भी बच्चों ने बनाए हैं वो जानते हैं कि इन कार्ड्स को बनने के पीछे कितनी मेहनत हुआ करती थीं। हर कोई चाहता था कि उसका कार्ड उसके अपने को पसंद आए। इसमें पैसों का कोई खेल नहीं था। बिना पैसों के अपना बेस्ट आउटकम कैसे दे सकते हैं यह इन कार्ड्स ने हमें सिखाया था। वेडिंग कार्ड्स में आने वाली गोल्डन डोरियों को भी सहेजकर उस दौर के बच्चे रखा करते थे, ताकि जब वो अपना कार्ड बनाएं तो उनका कार्ड बेहतरीन बने।

वो बीत चुका वक़्त

यह सच है कि हाथ से बनने वाले कार्ड क्या, अब तो रेडीमेड कार्ड का दौर भी बीत चुका है। लोग अब एक-दूसरे को व्हॉट्सऐप के जरिए हैप्पी न्यू ईयर कहते हैं। पार्टियां करते हैं। अच्छी बात है, हर दौर का अपना एक तरीका और मिजाज़ होता है। वैसे भी जैसा जिस ज़माने का चलन हो इंसान को वैसे ही रहना होता है और रहना चाहिए भी। लेकिन अगर कभी वक़्त मिले तो अपनी अलमारी में से उस डिब्बे को ज़रूर ढूंढ कर निकालें जिसमें आपकी किसी सहेली या दोस्त का दिया हुआ कार्ड आपके पास रखा हो। आप यक़ीन जानें जब आप उस कार्ड को देखेंगे तो यह आपके लिए एक मूड इनहांसर का काम करेगा। आपको अंदाज़ा होगा कि कुछ चीजें अनमोल होती हैं। इसके अलावा इन चीज़ों से जुड़ीं यादों की पगडंडियों से गुज़रना उम्र के हर दौर में अच्छा लगता है। वक़्त मिले तो आप भी ज़रा गुज़र कर देखिए...

अभी के लिए बस इतना ही, नया साल आपको, मुझे और सभी को मुबारक।

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