हमारे भारत में कमोबेश हर नौकरी करने वाले की जिंदगी का एक खूबसूरत दिन होता है उसका रिटायर होना। जब इंसान रिटायर हो रहा होता है, उसके साथीगण और परिवार वाले यही चाहते हैं कि बहुत जिम्मेदारी से उसने अपनी जिंदगी में नौकरी की। लेकिन अब जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपने जीवन में उन ख्वाहिशों को जीना है जो नौकरी और समय की कमी के चलते कभी वो कर नहीं पाया। गाजे-बाजे के साथ उसका रिटायरमेंट होता है। लेकिन अगर हम घर रूपी इंस्टीट्यूट की बात करें, तो यहां हम देखते हैं कि एक गृहस्थ महिला को कभी रिटायर होने का सुख मिल ही नहीं पाता। वो इस इंस्टीट्यूट की एक ऐसी कर्मचारी होती है जिसके हिस्से में इतवार भी नहीं आता।
वो, जो अपनी सूझ-बूझ से अपने गृहस्थ जीवन को बांधकर रखती है, उसे बंधन से उस एक उम्र के बाद बल्कि किसी परिस्थिति की वजह से आज़ादी मिल पाती है। उसे तब तक वर्किंग रखा जाता है जब तक डॉक्टर यह न कह दे कि अब यह काम करने की स्थिति में नहीं है। लेकिन यह भी एक उम्र के बाद, लगभग प्रौढ़ अवस्था में ही जाकर महिला को नसीब होता है। ऐसा हम इसलिए लिख रहे हैं कि अगर कभी अपनी बीमारी या कहीं आने-जाने की वजह से घर के कार्यों को नहीं समेट रही, तो घर मानो पलट सा जाता है।
आखिर क्यों नहीं
सवाल अभी भी जस का तस है कि आखिर महिला रिटायर नहीं होती या होना नहीं चाहती। ऐसा इसलिए क्योंकि जब वो इस घर की बागडोर संभालती है, तो मजबूरी और कर्तव्यों के मोहपाश में ऐसी बंधती है कि वो चाहकर भी उससे निकल नहीं पाती। शादी के बाद ही अक्सर महिलाएं रसोई में जिम्मेदारी से अपना नाता जोड़ती हैं। वहां उन्हें एक सीनियर के तौर पर अपनी सास मिलती है, जो बहुत बार कुछ नया करने का अवसर अपनी बहू को नहीं देती।
जो जिस ढर्रे पर चला आ रहा है, उसे ऐसा ही करने को कहा जाता है, या कई बार उसे ऐसा करने पर सास के तौर-तरीके के तौर पर विवश किया जाता है। कुछ चीजों में प्रतिष्ठा होती है तो किसी चीज को अनुशासन का नाम दिया जाता है। धीरे-धीरे वो जितना परिवर्तन कर सकती है, कर लेती है। अन्यथा इस स्थिति को स्वीकार कर स्वयं को उसी अनुसार ढाल लेती है।
शायद उस कसमसाहट का नतीजा
हां, तो शुरुआती स्तर पर एक गृहस्थ महिला का जीवन घर में ऐसा बंध जाता है कि वो उससे बाहर नहीं निकल पाती। सभी की चाय-नाश्ते से लेकर रात को कहीं न कहीं गेट लगाने की जिम्मेदारी भी उसी की ही हो जाती है। और इन सभी कामों को करते-करते वो इसी में अपना जीवन तलाश कर लेती है। घर में रहते सब है, लेकिन कौन सी चीज कहां रखी है? इसका जवाब सिर्फ उसी के पास होता है। उसे ऐसा लगने लगता है कि अगर वो नहीं करेगी तो काम हो ही नहीं सकता। यही वजह है कि वो खुद को बीमारी में भी घसीट-घसीट कर खड़ा करती है और जितना उससे संभव हो सकता है, उतना वो कर लेती है।
तो क्या उस सिस्टम को बदलने की ज़रूरत है
कितनी अजीब बात है कि हम एक महिला को उसके हिस्से का एक इतवार भी नहीं दे पाते। यहां तक कि अगर वो कभी कह दे कि आज मैं खाना नहीं बनाऊंगी, तो बेशक आज के जमाने का उसका लिबरल पति उससे नहीं कहेगा कि “नहीं-नहीं, खाना तो तुम्हें ही बनाना है।” खाना ऑनलाइन बाहर से आ जाएगा या बाहर जाकर खा लिया जाएगा।
लेकिन कभी कोई खाने बनाने की तो क्या, खाना सर्व करने की जिम्मेदारी नहीं लेता। इस वक्त हमारे समाज को शायद ज़रूरत है अपना अवलोकन करने की। यह समझने की आखिर गलती कहां हो रही है। हम कहने को तो आधुनिक हो गए। लेकिन क्या सच में हम लिबरल हो पाए हैं? क्या कभी कोई पति मेहमानों के बीच में बैठकर यह कह पाया है कि “अरे तुम मेहमानों से बात करो, मैं चाय बनाकर लाता हूं।”
औरत पर ही आरोप है
समाज का यह ताना-बाना ऐसा कसा गया है कि महिला एक समय के बाद उस गृहस्थी के इतर कुछ सोच ही नहीं पाती। इस सीमित दुनिया को वो अपना पूरा जीवन मान बैठती है। इसके चलते वो खुद के शौकों के बारे में सोच नहीं पाती। अगर एक महिला 60 साल की उम्र में शारीरिक तौर पर स्वस्थ है, तो वो रसोई और घर की जिम्मेदारी से बरी होना ही नहीं चाहती।
तब दुनिया इन जैसी महिलाओं के लिए अपनी राय बना लेती है और कहती है – “महिला किचन पॉलिटिक्स से बाहर नहीं आना चाहतीं।” समझकर देखें तो यह दोष इन महिलाओं का नहीं है। दोष है हमारा कि हमने उन्हें इतना सीमित कर दिया कि अगर कभी आप उनकी हॉबी पूछें, तो बहुत सी महिलाओं के पास इस सवाल का जवाब भी नहीं होगा।
तो अब क्या
यह सवाल मुश्किल है और बहुत आसान भी। अपने स्तर पर अपने परिवार में महिलाओं को रिटायर होने का मौका दें। उन्हें रिटायर करने के लिए किसी आने वाली नयी महिला सदस्य का इंतजार न करें। आप समझ ही गए होंगे। समझदार को इशारा काफी है।
पापा का जब रिटायरमेंट होने वाला हो, उस समय से कुछ पहले मां की रिटायरमेंट की तैयारियां करें। इसके लिए आपको माहौल बनाना होगा। उन्हें सुबह-शाम के कामों से मुक्त करने की कोशिश करें। अपने पर्सनल घर का हर सदस्य खुद करें।
यह जंग बहुत लंबी है और जीतनी आपको है। ताकि आपकी मम्मी भी रिश्तेदारों के बीच में बड़े गर्व से कह पाएं कि – “भई, अभी 56 साल की उम्र हो गई, अब चार साल बाद हम रिटायर होने वाले हैं।”
मैं दुआ करती हूं कि आप ऐसा कर पाएं।


