हम जब किसी टॉपिक पर बात करते हैं तो खुद को इंटेलेक्चुअल समझते हैं। हमें लगता है कि हम सो-कॉल्ड प्रोग्रेसिव समाज में शामिल हैं। हम सभी की तरह नहीं सोचते। हमारी सोच कुछ अलग है। लेकिन ऐसा नहीं है कि बात करने की बात अलग होती है और यह बातें जब हकीकत का रूप लेती हैं तो वो अलग होती हैं।
अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसी क्या बात है। तो आज हम बात करेंगे एक लड़की की, जो अगर बहुत यंग एज में विधवा हो जाए तो उसके जीवन में चुनौतियों को बड़ा बनाने में हम कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते। हम और आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि यंग लड़की, जिसके ऊपर अकेले बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी है, वो खुद को बटोरकर अपनी जिंदगी जी रही है। उसे जीने दें।
तब समझी बात
इस बात को जब मैं तब समझीं जब मैं मेट्रो में लेडीज कंपार्टमेंट में अपने स्टेशन के आने का इंतजार कर रही थी। एक स्टेशन पर दो-तीन महिलाएं एक साथ चढ़ी थीं। जैसा कि अमूमन होता है कि जब लोग एक ग्रुप के साथ होते हैं तो वो मोबाइल में नहीं बल्कि एक-दूसरे के साथ बातचीत किए चलते हैं।
वो लोग भी बात करने लगीं, लेकिन बात का टॉपिक कुछ ऐसा था कि ना चाहते हुए भी मेरा ध्यान उस तरफ चला गया। उनमें एक ने बोला था कि आज के जमाने में तो लोग कुछ सोचने-समझने को तैयार ही नहीं हैं। सोनिया को देखो, लाल चूड़ियां पहन रही है? तो दूसरी बोली, हां भई, अपने घर का माहौल ऐसा थोड़ी है कि कोई भाभी को कहे कि तुम सफेद साड़ी पहनो। लेकिन यह तो खुद के सोचने की बात है कि उसे हल्के रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
खैर, आगे मुझसे कुछ सुना नहीं गया। मुझे लगा अगर शायद मैं यहां बैठी रही तो इन लोगों से बहस करने लगूंगी। लेकिन यह बात मेरे जेहन में बहुत उथल-पुथल मचा गई। मैं सोचने लगी, यह औरतें जो इस मेट्रो में बैठीं थीं, उनकी सोच का लेवल कैसा हो। देखने में वो सभी पढ़ी-लिखी लग रही थीं।
लेकिन किसी अपने के लिए ऐसी सोच आई कहां से है? क्यों आखिर अपने पति को खोने के बाद एक महिला लाल चूड़ियां नहीं पहन सकती? और ऐसा भी क्यों है कि चटक रंग उसे नहीं पहनने चाहिए?
यह दोहरापन क्यों?
आज हम लोग सोचते हैं कि हम पुरानी दकियानूसी बातों को नहीं मानेंगे। यह भी सच है कि इस तरह की सिंगल महिलाएं अब आपको सफेद साड़ी में नजर नहीं आतीं।
लेकिन कोई इंसान क्या रंग पहनेगा, यही उसकी पसंद-नापसंद पर निर्भर करता है। इसका मैरिटल स्टेटस से क्या ताल्लुक है? बहुत से लोगों को हल्के रंग पसंद होते हैं, तो बहुत लोगों को लाल, पीले, हरे जैसे रंग पहनना ही पसंद होता है।
लेकिन ताज्जुब की बात है कि कहीं न कहीं परिवार में ही अगर एक विधवा महिला अच्छी तरह रहने लग जाए या हंसती-मुस्कुराती नजर आ जाए तो परिवार की महिलाओं के मन में कुछ सवाल उठ खड़े होते हैं।
इस जमाने के लोग काफी समझदार हैं। वो महिला के सामने कभी इस तरह की बातें नहीं करेंगे, लेकिन आंखों की एक भाषा और चेहरे के हावभाव बहुत कुछ कह जाते हैं। मैं सोचती हूं हम किसी के साथ यह दोहरापन कैसे कर सकते हैं?
वो आपकी अपनी है
सोचिए कभी दिल पर हाथ रखकर एक विधवा की स्थिति। अगर वो आपको नॉर्मल दिख रही है, इसका मतलब कतई यह नहीं है कि वो नॉर्मल है।
वो कोशिश कर रही है। बहुत आसान होता है हम लोगों के लिए यह कहना कि अरे, बड़ी जल्दी नॉर्मल हो गई। नहीं, वो अपने बच्चों के लिए उठती है। अपने बच्चों को मुस्कराता हुआ देखना चाहती है। ऐसे में अपने आंसू पोंछकर जिंदगी में उम्मीद का एक सिरा ढूंढने निकल जाती है।
क्या आप ऐसा करेंगे?
आइंदा कभी जब भी आप किसी ऐसी महिला को देखें तो उसे उसके कपड़ों से जज कतई ना करें। उसे नॉर्मल देखकर यह ना सोचें कि वो बहुत प्रैक्टिकल है।
वो आपको आंसू दिखाती नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि वो दुखी नहीं है। लेकिन मजबूरी का रोना लेकर बैठना कोई हल नहीं। वो अब अपने बच्चों के लिए पिता भी बन चुकी है। उसे अब अपने बच्चों के लिए सिर्फ खाना पकाना नहीं है। अब उस खाने को पकने का इंतजाम भी करना है।
मुझे लगता है इस लेख में बहुत कुछ लिखा जाना बाकी है। बहुत गुंजाइश है अभी। आपसे सिर्फ इतनी विनती है कि अपने दिमाग और दिल को थोड़ा सा खोलिए। बहुत जरूरी है हमारे लिए इंसानियत के लिए।