क्या 'सितारे ज़मीं पर' समझा पाएगी हमें उस नॉर्मल की परिभाषा

क्या 'सितारे ज़मीं पर' समझा पाएगी हमें उस नॉर्मल की परिभाषा

हाल ही में आमिर ख़ान की बहुप्रतीक्षित फ़िल्म सितारे ज़मीं का ट्रेलर रिलीज़ हुआ है। यह फ़िल्म 20 जून को रिलीज़ होगी और आमिर ख़ान तीन साल बाद इस फ़िल्म में अपना अभिनय दिखाने वाले हैं। इसका ट्रेलर अपने सब्जेक्ट की वजह से भी लोगों का ध्यान खींचने में कामयाब रहा। दरअसल आमिर ख़ान इस फ़िल्म में ऐसे कोच की भूमिका निभा रहे हैं जिनकी ज़िम्मेदारी होती है स्पेशल एबल्ड लोगों की एक टीम बनाना और उन्हें ट्रेंड करना। यह फ़िल्म एक तरह से साल 2008 में आई फ़िल्म तारे ज़मीं का सीक्वल है। तारे ज़मीं के बाद आमिर का टीचर वाला किरदार बहुत पसंद किया जाता है, इस बार आमिर एक कोच के तौर पर नज़र आने वाले हैं।

तो क्या हम डिस्लेक्सिया की तरह ही समझ पाएंगे स्पेशल एबल्ड को

कुछ फ़िल्में बनती हैं एंटरटेनमेंट के लिए और कुछ फ़िल्में बनती हैं आपको कुछ सिखाने और समझाने के लिए। तारे ज़मीं पर एक ऐसी ही फ़िल्म थी जो स्लो लर्नर्स के दर्द को पूरे भारत को समझा गई। इसमें ईशान अवस्थी का किरदार आज भी लोगों को याद है। इस फ़िल्म से पहले जो बच्चे पढ़ाई में कमज़ोर होते थे उनके बारे में माना जाता था कि यह बच्चे पढ़ाई में ध्यान नहीं देते, इनका मन खेल में ज़्यादा लगता है। लेकिन वो पढ़ाई के कॉन्सेप्ट को समझ नहीं रहे और वो लोग क्यों नहीं समझ पा रहे यह बात हम जैसे आम भारतीयों को समझाई तारे ज़मीं ने। हम समझ पाए डिस्लेक्सिया क्या होता है। वहीं अब स्पेशल एबल्ड के लिए भी लगता है कि हमारे समझ के दरवाज़े खुलने वाले हैं। हम समझ पाएंगे कि हर आदमी इंटेलेक्चुअल लेवल पर अलग होता है। सभी के समझने का दायरा अलग होता है। और हर आदमी का अपना-अपना नॉर्मल होता है।

स्पेशल एबल्ड की एक्टिंग

इस फ़िल्म की ख़ास बात है कि आमिर जिन स्पोर्ट्स पर्सन की टीम को सिखाते हैं वो सभी लोग स्पेशली एबल्ड हैं। यह फ़िल्म ख़ासकर उन पेरेंट्स के लिए एक हौसले का काम करेगी जिनके बच्चे स्पेशली एबल्ड हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हर स्पेशली एबल्ड के अंदर कुछ न कुछ ऐसी खूबी होती है जहां वो अपने जीवन को जीत सकता है बल्कि उसे जीत भी सकता है। वो कहते हैं ना नज़रिया बदलो तो नज़ारे बदल जाते हैं। बस हम सभी को समाज के तौर पर इस बात को समझना होगा कि वो लोग जो हम जैसे हैं उनके और हमारे लिए ही दुनिया नहीं है। दुनिया उन लोगों के लिए भी है जो कुछ अलग नज़र से दुनिया को देखते हैं या वो जो हमसे अलग होते हैं। हर इंसान का अपना एक कैलीबर होता है और हर इंसान का अपना एक नॉर्मल होता है। बस हमें उस अलग नॉर्मल को समझना होगा।

फ़िल्में सिखाती हैं

बेशक फ़िल्में बहुत सी चीज़ें सिखाती हैं। अगर हम तकनीकी भाषा में देखें तो फ़िल्मों के ज़रिए हमें विज़ुअल मैसेज मिलते हैं। यही वजह है कि हमारा ब्रेन इन मैसेज को अच्छे से समझ पाता है और स्वीकार करता है। इस फ़िल्म को ही देख लें जिससे उम्मीद की जा रही है कि यह स्पेशल लोगों के लिए हमारे नज़रिया को बदलेगी। हां बेशक इन सभी अच्छाइयों के बावजूद इस बात की भी चर्चा हो रही है कि यह फ़िल्म साल 2018 में आई स्पैनिश फ़िल्म चैंपियंस का रीमेक है। ख़ैर हम तो यह जानते हैं कि यह फ़िल्म किसी का भी रीमेक हो। लेकिन अगर यह फ़िल्म स्पेशली एबल्ड के लिए समाज की सेंसिटिविटी को जगाने में कामयाब रही तो यह फ़िल्म की कामयाबी होगी। और चूंकि फ़िल्म आमिर की है और आमिर फ़िल्मों में इस तरह के मुद्दों को उठाने के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में हम उम्मीद कर रहे हैं कि यह फ़िल्म फ़नी अंदाज़ में उस मैसेज को समाज में लेकर जाएगी। जिसे समझने की हमारे समाज को बहुत ज़रूरत है।

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