अहंकार आपको ले डूब सकता है, आप से बेहतर कौन समझ सकता है

अहंकार आपको ले डूब सकता है, आप से बेहतर कौन समझ सकता है

तुमने हमारी सगाई में भगोना उल्टा दिया था अब तुम्हारी शादी में हम पत्तल उड़ा देंगे। आज के चुनावी नतीजों को देखकर ऐसा कहा जा सकता है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के मतभेद जो हरियाणा से शुरू हुए, उसमें दिल्ली चुनाव का भी अध्याय जुड़ गया। खैर, इन सब के बीच बीजेपी को बधाई। हम इतने बड़े विशेषज्ञ तो नहीं जो इतने बड़े-बड़े लोगों को सलाह दें कि इस चुनाव में उन्होंने क्या सही किया और क्या गलत, लेकिन एक सही वाले आम आदमी की तरह अपना विचार तो साझा कर सकते हैं।

सो, आज की मोरल ऑफ दी स्टोरी यह है कि...

कहीं पे छोटा भाई बन के रहो, तो कहीं पे आपको बड़े भाई बनने का मौका मिलेगा और इस एडजस्टमेंट को जिसने सही से कर लिया, वो अपनी मंज़िल की तरफ लगभग पहुँच ही गया। वहीं जहाँ इस एडजस्टमेंट की कमी होती है, वहाँ सब कुछ होते हुए भी आप टार्गेट हिट नहीं कर पाते। अब बातें चाहे जो भी करें, वो कोई मैटर नहीं करतीं कि इतने वोट कटवा दिए, दूसरे का डेटा इतना है, हमारा उतना है, इतने परसेंट हमारे आ गए या बस इतना सा मार्जिन था। यह चुनाव अरविंद केजरीवाल के चेहरे को दिल्ली की जनता द्वारा नाकारा गया, इसी वजह से याद किया जाएगा।

कहीं अहंकार ही तो आपका नहीं खा गया?

आम आदमी पार्टी के साथ रहे कुमार विश्वास तो बोलते ही हैं कि आप पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अहंकारी है, और वह दिखती भी है। जिस तरह से पिछली बार के चुनाव जीतने के बाद आप पार्टी कार्यालय के अंदर ही हान्स देले रिंकिया के पापागाना चलाया गया। उसके बाद मनोज तिवारी जी का वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें वह कार में बैठ के इंटरव्यू देते हुए रो रहे थे और कह रहे थे कि आप पार्टी को समय जवाब देगा मेरा मज़ाक उड़ाने का। सफलता को पचा पाना अपने आप में एक बहुत बड़ा काम है और सफलता के साथ में विनम्र रहना उससे भी बड़ा।

ज़ाहिर है, पार्टी स्तर पर इसकी समीक्षा होगी और आम आदमी को भी यह समीक्षा करने का अधिकार है, तो हमारी समीक्षा में यही निकल कर आता है कि अहंकारी मत बनो। जब आपकी सफलता का दौर चल रहा हो तो कुछ ऐसा काम ना कर दो जिससे कि सामने वाले को इंतज़ार रहे, क्योंकि समझ लीजिए कि चुपचाप सह लेने वाला आदमी वक्त बदलने पर आपके परखच्चे उड़ा देगा और वही आज हुआ आम आदमी पार्टी के साथ। उनके दिग्गज नेता जो हैं, वो हार गए।

अब सोचने का समय आ गया है

अब वो समय आ गया जहाँ से उन्हें सोचना होगा कि कहाँ पे गलतियाँ रही हैं। गलतियाँ जगज़ाहिर हैं, राजनीति समझने वाले हर छोटे-बड़े को पता है कि क्या गलती हुई? अब दिमाग लगाइए कि क्या चूक हुई, उस चूक को कैसे दुरुस्त किया जाए? भविष्य में आप अपने आपको कैसे बेहतर प्रस्तुत करें? और अगर यही मैं बड़ा - मैं बड़ाकी लड़ाई चलती रही तो फिर आपकी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा वेटिंग एरियामें ही बीत जाएगा।

क्योंकि इस दुनिया में उसी की तूती बोलती है जो अच्छी रणनीति बनाता है, जो अच्छे तरीके से अपने गेम को खेलता है, जो पूरी मुस्तैदी के साथ डटा रहता है। और यह हमेशा बीजेपी की एक ताकत रही है। आप चाहे बीजेपी के प्रशंसक हों या विरोधी, आपको यह मानने में कतई परहेज़ नहीं करना चाहिए कि बीजेपी के पास हमेशा एक सॉलिड प्लान होता है, उसको ज़मीन पर एग्ज़ीक्यूट करने के लिए एक पूरी टीम होती है और उस टीम की मॉनीटरिंग करने के लिए भी एक टीम होती है। और इसी वजह से वे अपने हर चुनाव को एक इवेंट बनाकर लड़ते हैं और उनकी सफलता दर किसी से छुपी नहीं है।

हमें भी सीख लेनी चाहिए

तो हमें भी आम ज़िंदगी में बीजेपी से सीख लेनी चाहिए कि जिस भी काम को जब हम करें, तो किस तरह से प्लान करें, किस तरह से एग्ज़ीक्यूट करें और उससे किस तरह आउटपुट निकले।

कोई नहीं, चुनाव हो, ज़िंदगी हो, रात हो, दिन हो, सब कट ही जाता है। अमीर की अमीरी में कट रही है, ग़रीब की ग़रीबी में कट रही है। सूरज उगेगा, सूरज ढलेगा, दिन वापस से नया आएगा। हार-जीत एक पार्ट है, इस हार से बहुत ज़्यादा हताश न होइए और जीत जाने वाले लोगों के लिए खुश रहिए क्योंकि अब ज़्यादा चैलेंजेस जीतने वालों के पास हैं। अब उन्हें वो सब कुछ डिलीवर करना पड़ेगा जिसके बेस पर आए हैं। लेकिन वो डिलीवर कैसे करेंगे, कब करेंगे, इसमें अब आपको उपयोगी भूमिका निभानी है। अब पाँच साल इंतज़ार कीजिए, आने वाले टाइम में फिर एक अच्छा कॉन्सेप्ट लेकर ज़मीन पर आइए।

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