महान अंग्रेज़ी कवि शेक्सपीयर को कौन नहीं जानता। बेशक वो पंद्रहवीं सदी के लेखक थे लेकिन उनकी कविताओं और प्ले में व्यक्त उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस समय थे। हां, शेक्सपीयर का एक वाक्य वो जीवन दर्शन के लिए बहुत बड़ी सीख है। उन्होंने कहा था – यह दुनिया एक रंगमंच है और हम सभी लोग अलग-अलग किरदारों को निभाने वाले पात्र। अगर हम अपने जीवन को इस बात से कोरिलेट करें तो ग़लत नहीं होता। इस दुनिया में रहकर हम अलग-अलग पात्रों को जीते हैं – कभी किसी रोल को, तो कभी दूसरे को। जिस पात्र की जैसी ज़रूरत होती है, हम उसके अनुसार अपने आप को तैयार करते हैं।
औरतें तो सबसे बड़ी अदाकारा होती हैं
वैसे तो हर पात्र का अपना एक रोल होता है, लेकिन महिलाएं नाटक करने का हुनर बख़ूबी जानती हैं। नहीं नहीं, आप ग़लत मत सोचिएगा। महिलाओं पर मैं कोई आक्षेप नहीं लगा रही। मैं तो दिवंगत सीनियर एक्टर सुरेखा सीकरी की बात को ही आप तक पहुंचा रही हूं। उन्होंने कहा था कि महिलाओं से अच्छा अभिनय कोई नहीं करता। आप एक शादीशुदा महिला को देखें, जब वो अपने मायके जाती है और उससे उसका हालचाल पूछा जाता है तो मायके में, तब अपने आंसुओं को छुपाकर वो अपने मां-बाप को बताती है कि कितनी खुश है। मां-बाप भी अपनी बेटी की क़िस्मत पर इतराते हैं। मां सोचती है कि बेटी ससुराल में राज-राज रही है और बेटी अपने संघर्षों में अपने जीवन को जीने का हुनर सीख लेती है।
मैं पेशे से एक पत्रकार हूं। अक्सर सेलिब्रिटीज़ के इंटरव्यू लेती हूं। सुरेखा सीकरी के देहांत के कुछ समय पहले जब मैंने उनका इंटरव्यू लिया था, तब उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा था कि मुझे तो लगता है कि महिलाओं से बढ़कर कोई अदाकारा होती ही नहीं है। आप हर महिला को ध्यान से देखिए – आपको एक अदाकारा नज़र आ जाएगी।
हम अपने किरदार में परफेक्ट बन जाएं
ख़ैर, यह तो थी सुरेखा जी की बात लेकिन अगर हम शेक्सपीयर की फिलॉसफ़ी को मानें तो हमें समझना होगा कि हम आज से ही तय कर लें कि हमें जो भी किरदार मिल रहे हैं जीवन में, हम उसमें अपना बेहतर दें। चाहे किरदार बड़ा हो या छोटा, इससे एक अभिनेता का कोई फ़र्क नहीं पड़ता। बस वो अपने किरदार में खोकर मंच पर अपना बेहतरीन देता है। हमें भी कुछ ऐसा ही करना है। और इस बात को भी याद रखें – जीवन में जीवन से बड़ा कुछ नहीं होता। जब आप मंच पर होते हैं, तब ही आप और आपकी अहमियत होती है। इसलिए ख़ुद को कभी बड़ा ना मानें।
किरदार याद रह जाते हैं
अगर हम अपने जीवन को समझें तो समझ पाएंगे कि बेशक कुछ किरदार अच्छे होते हैं, लेकिन उनका ख़त्म होना तय होता है। हमें भी पता है कि एक दिन हमारा किरदार इस जीवन रूपी रंगमंच से ख़त्म हो जाएगा। बस रह जाएंगी तो कुछ यादें। तो आइए तय करें कि हम और आप अपने किरदारों के ज़रिए कुछ ऐसी यादें छोड़ जाएं जो हमेशा लोगों को याद आएं। लोग हमें हमारे बाद भी याद करें तो अच्छे में ही याद करें। देखा जाए तो यही ज़िंदगी का हासिल है।
हम सभी इस बात को भली-भांति समझ सकते हैं। हमने अपनी ही ज़िंदगी में ना जाने कितने ही किरदारों को ख़त्म होते देखा है। वो जो अहम थे। वो जिनकी इस जीवन रूपी नाटक में बहुत दरकार थी। ऐसे ही तो थे मेरे पिता भी, जो ऐन उस वक़्त चले गए जब जीवन रूपी हमारी कहानी के वे प्रमुख पात्र थे। वो नायक जो सभी ज़िम्मेदारियों को सही तरीक़े से निभा रहा था। लेकिन उनके जाने के बाद भी यह जीवन रूपी रंगमंच आज भी चल रहा है। उन्हें इस मंच से गए लगभग तीस साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी जब उनकी बात होती है तो लोग कहते हैं – वो बहुत अच्छे थे। मैं बहुत छोटी थी जब वो गुज़रे। मैं ज़्यादा कुछ नहीं जानती उनके बारे में, लेकिन इस बात से बहुत ख़ुश होती हूं कि लोग मेरे पापा को आज भी याद करते हैं। मेरे बड़े मामा कहते हैं कि उनसे बेहतर कोई दामाद नहीं। मां कहती थी वो बहुत अच्छे हसबैंड थे और पड़ोसी आज भी उनके गुण गाते नहीं थकते। मैं सोचती हूं कि हां, उनका जीवन भले ही छोटा था लेकिन सफल था।
हम भी कुछ ऐसी ही तैयारी कर लें कि कोई हमें याद करे तो अच्छे में याद करे। यही तो ज़िंदगी की कामयाबी है। और यही एक अभिनेता का जीवन रूपी मंच पर बेहतरीन अभिनय भी।


