मधुबनी पेंटिंग और कला अपने आप में अनुपम है। भारत के हर राज्य में कोई ना कोई कला सांस ले रही है। बिहार राज्य की बात करें तो वहां की मधुबनी पेंटिंग उस राज्य की पहचान है। जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस पेंटिंग की साड़ी को पहनकर बजट प्रस्तुत किया तो बजट के साथ इस साड़ी की भी चर्चा रही। इस साड़ी के साथ ही चर्चा हो रही है इस साड़ी को वित्त मंत्री को भेंट करने वाली दुलारी देवी की भी, जो कभी स्कूल तो बेशक नहीं गईं लेकिन कला का ऐसा हाथ थामा कि इस कला ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार तक दिलवा दिया। साल 2021 में उन्हें पद्मश्री मिल चुका है। वे कहती हैं, "मुझे बहुत अच्छा लगा जब वित्त मंत्री ने मेरी बनाई हुई साड़ी को ना केवल स्वीकार किया बल्कि बजट जैसे अवसर पर पहना भी।"

कौन हैं दुलारी देवी
अगर हम दुलारी देवी की बात करें तो उन्हें ऐसा कोई सो-कॉल्ड एक्सपोज़र नहीं मिला था, जिससे उनकी कला पल्लवित हुई हो। बस उन्हें ज़िंदगी में जो भी हालात मिले, उसका डटकर मुकाबला किया। चलिए अब उनकी निजी ज़िंदगी के बारे में बात करते हैं। तो हुआ कुछ यूं कि 12 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई और कुछ ऐसी परिस्थिति रही कि उन्हें दो साल बाद ही अपने मायके वापस आना पड़ा।
महासुंदरी देवी के यहां चूल्हा-चौका
आप बुरी किस्मत या अच्छी किस्मत को नकार नहीं सकते। कह सकते हैं कि तमाम बुरी परिस्थितियों के बावजूद भी उनकी किस्मत अच्छी रही। दुलारी देवी की बात करें तो वह मल्लाह परिवार से ताल्लुक रखती हैं। स्कूल कभी वह गई नहीं थीं। जब शादी के बाद दोबारा मायके लौट आईं तो करने के लिए कुछ ऐसा बहुत बड़ा नहीं था, इसलिए महासुंदरी देवी के यहां चूल्हा-चौके के काम को करने लगीं।
आपको बता दें कि महासुंदरी देवी मधुबनी कला में एक स्थापित नाम हैं। यह स्वाभाविक सी बात है कि जब वे उनके यहां काम करती थीं तो उन्होंने ना केवल उन्हें पेंटिंग करते हुए बल्कि कला के साथ जीते हुए भी देखा होगा। यह इसी सीख का नतीजा था कि उन्होंने ज़मीन को लीपकर उस पर चित्र बनाने लगीं। यहीं से कला को ऐसा विस्तार मिला कि अब इसी ने ही उन्हें सफलता तक पहुंचा दिया है।
अपनी भाषा में
दुलारी देवी की अगर हम बात करें तो वे अपनी स्थानीय भाषा में ही बात करने में सहज रहती हैं। लेकिन उन्होंने अपनी कला के साथ-साथ अपनी सोच के दायरे को भी बहुत बढ़ाया है। हर कलाकार अपनी पेंटिंग में कुछ ना कुछ संदेश देता है। उनकी पेंटिंग में भी समाज की उन्नति के संदेश छिपे होते हैं। वे खुद नहीं पढ़ीं और स्कूल नहीं गईं तो क्या हुआ, लेकिन अपनी पेंटिंग में वे बेटी को बचाने और उन्हें पढ़ाने के संदेश देती हैं। इसके अलावा वे मिथिला के खान-पान और संस्कृति पर भी पेंटिंग बनाती हैं।
धैर्य रखना होगा
रांटी गांव की इस कलाकार का जीवन को लेकर और सफलता को लेकर भी विचार बहुत स्पष्ट हैं। वे कहती हैं, "इस कला ने मेरे जीवन की दिशा और दशा बदल दी। मेरा पूरा जीवन इस कला को समर्पित है। अपनी ओर से इस कला को बढ़ाना और आने वाली पीढ़ी को सिखाना मेरी ज़िम्मेदारी है। मैं बच्चों को एक ही बात कहती हूं, कला को सीखना आसान नहीं होता, आपको धैर्य रखना होता है और निरंतर अपने अंदर सुधार करना होता है। आप याद रखें कि जब तक आपके अंदर गुंजाइश बनी रहती है, आपकी कला निखरती रहती है।"


