रणवीर इलाहबादिया से सीख लें, जुबान संभालना क्यों ज़रुरी है

रणवीर इलाहबादिया से सीख लें, जुबान संभालना क्यों ज़रुरी है

वो कहते हैं ना कमान से निकला हुआ तीर और जुबान से निकली बात कभी वापिस नहीं आती। हम सभी इंटरनेट के इस दौर में रहते हैं और सभी को पता है कि भारत के फेमस यू ट्यूबर रणवीर इलाहबादिया ने एक शो में ऐसा क्या कह दिया जो आज उनकी ही ज़िंदगी में एक आफत बन चुका है। वे इस संदर्भ में माफी भी मांग चुके हैं लेकिन शायद गलती इतनी बड़ी हो गई है कि जो उनकी जान का फंदा बन चुकी है। हम आपके साथ कोई रिपीट टेलीकास्ट नहीं कर रहे कि रणवीर ने ऐसा क्या किया जो उन्हें नहीं करना चाहिए। आपने इस बारे में बहुत कुछ सुन और पढ़ पहले ही चुके हैं। हां अगर आपको नहीं पता कि रणवीर ने ऐसा क्या कह दिया जो उनको नहीं कहना चाहिए था तो यक़ीन जानें कि अच्छा ही हुआ जो आपको यह पता नहीं। और मेरी विनती है कि आप इसे जानने की कोशिश ना ही करें तो बेहतर रहेगा।

यह जुबान ही तो है

अगर हम अपनी ज़िंदगी में भी देखें तो कई बार हम ऐसा कुछ बोल जाते हैं जिसे बोलने का हमारा कोई मतलब नहीं होता, या हम वो बोलना नहीं चाहते। लेकिन फिर भी यह जुबान है साहब फिसल ही जाती है। लेकिन आप एक बात देखें कि आजकल लोग अपने आप को बहुत ज़्यादा एक्सप्रेस कर रहे हैं। लोग बहुत वोकल हो गए। यह वोकल होना सिर्फ अपने अपनों के साथ होने तक सीमित नहीं है। लोग हर किसी के सामने बस खुद को एक्सप्रेस कर रहे हैं। इस बोलने की वजह से कई बार ऊटपटांग बातें और लफ्ज़ भी निकल जाते हैं। पहले लोग इस फिलॉसफी पर अमल करते थे कि "पहले तोलो फिर बोलो।" लेकिन आजकल लोग इस बात को मान रहे हैं कि "पहले बोल देते हैं और फिर तोल वोल बाद में लेंगे।" यही वजह है कि आजकल लोगों की जुबान कुछ ज़्यादा ही फिसल रही है।

शायद उस माहौल की ज़रुरत है

आजकल क्या हर दौर में लोग उस ज़माने के हिसाब से चलते हैं जो वो ज़माना होता है। लेकिन ज़माने के साथ रहते हुए पुरानी अच्छी बातों को अगर हम अमल में लाएंगे तो कोई बुरी बात नहीं है। जैसे पहले ज़माने में लोग अपने पेरेंट्स के सामने यार शब्द का इस्तेमाल नहीं करते थे। और अगर ऐसा कर भी दिया जाता था तो उसे फौरन सुधारा जाता था। यह कहकर कि "यह यार कास्तेमाल करना कहां से सीख कर आई हो?" आजकल तो ख़ैर कहना ही क्या, अब तो बच्चे बड़े ही अपनेपन से "मम्मी यार" बोलते हैं। और मम्मी भी इस वर्ड के साथ इतना यूज़ टू हो चुकी हैं कि उन्हें भी कोई फर्क नहीं पड़ता। जबकि पहले बच्चे लड़ाई में भी एक दूसरे को पागल या बेवकूफ नहीं कह सकते थे। उन्हें फौरन टोका जाता था। अब घरों में भाषा पर टोका टोकी जैसे खत्म ही हो गई। अब तो बच्चे दोस्त बन चुके हैं। उन्हें अब कुछ भी कहने का अधिकार है।

फिर क्या करें?

आप इस बात को याद रखें कि आप जो भी बोल रहे हैं, जो भी कर रहे हैं वो आपकी पर्सनालिटी का आइना है। याद रखिए कि आपकी भाषा आपकी पर्सनेलिटी का भी आईना है। आप जो भी बोले जिसमें कोशिश करें कि कोई भी गाली गलौच के शब्द जैसे कि पागल या बेवकूफ तक शामिल ना हो। आप देखेंगे कि उसका असर आपके माहौल पर भी होगा। इसके अलावा इस बात को भी समझें कि खुद को मॉर्डन साबित करने की होड़ में कहीं आप फूहड़ साबित ना हो जाएं। जैसे कि रणवीर इलाहबादिया के साथ हुआ। वो बहुत ओवर कॉन्फिडेंस में वो सभी कुछ कह गए जो उनके अपने पतन का कारण होता नज़र आ रहा है। आज से ही तय कर लें कि चाहे आपको कुछ भी क्यों ना बोलना हो, आपको पहले सोचना है उसके बाद ही बोलना है।

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