भाईसाहब मैं अभिभावक हूं। मुझे मेरा हाल पर छोड़ दें ल यह दुनिया बड़ी ज़ालिम है जनाब मुझसे कहती है अपने बच्चे पर प्रेशर मत बनाओ, वो एक फ्री बर्ड है उसे उड़ने दो, बंदिश मत लगाओ। लेकिन रुकिए जरा आपसे एक बात कहनी है जरा आप मुझ पर प्रेशर बनाना बंद करें। तभी तो मैं भी प्रेशर बनाना बंद करुंगा।
अब बताता हूं कैसे? अब क्या कहते हैं कि मैं जब भी फालतू होता हूं तो मोबाइल देख ही लेता हूं। ऐसे ही मोबाइल देखते-देखते मुझे पता चला कि दुबई में एक बच्चे ने फेल हो जाने की वजह से अपनी जान ले ली। इस तरह की खबरें एक पेरेंट होने के नाते बहुत विचलित करती हैं।
खबर को पढने लगा तो पता चला कि जिस स्कूल में वो बच्चा पड़ता था गलती से बाप भी वहीं पर टीचर था। बच्चे के फेल पर होने पर स्कूल में ही पिता को यह कहा गया कि अरे भई टीचर का बच्चा फेल हो गया। इसके अलावा और भी बहुत कुछ कहा गया होगा जो कि उस खबर में मेंशन नहीं था। खैर अब आगे की बात जिसका अंदाजा मैंने लगाया कि वो यह है कि उस टीचर को उसके आस-पास हम और आप जैसे लोगों ने ही प्रेशर में डाल दिया। इतना प्रेशर बना दिया कि वो टीचर जब घर लौटा तो उसने अपने बेटे को बहुत डांटकर अपने दिमाग पर बने प्रेशर को रिलीज किया। वो बच्चा तो पहले ही फेल होने की वजह से टूटा हुआ था और बाप की डांट ने उसका रहा-सहा कॉन्फिडेंस और भी खत्म कर दिया। और फिर वो हुआ जो नहीं होना चाहिए था बच्चे ने अपने आप को खत्म कर लिया।
अब मोबाइल बंद कर अब मैं यह सोच रहा हूं कि अब उस बाप के दिमाग में क्या चल रहा होगा? लोग अभी भी उसी को कह रहे होंगे शायद कि उसे बच्चे को डांटना नहीं चाहिए था। बच्चे तो फूल होते हैं फूल उन्हें संभाल कर रखने की जरुरत होती है। बहुत ज्ञान आ रहा होगा उसके पास कि आखिर उसे एक कैसा बाप बनना चाहिए था।
मैं यक़ीन से कह सकता हूं कि उसे उसके आस- पास के लोगों ने अब तब यह यक़ीन दिला दिया होगा कि एक बाप के तौर वो फेल साबित हुआ। हम यही तो करते आए हैं, खुद को बेस्ट मानकर लोगों को जज करते हैं। किसी को पास करते हैं तो किसी को फेल।
कुछ लोगों ने तो बच्चे को भी अब नहीं छोड़ा होगा लोग कह रहे होंगे कि जिंदगी में तो न जाने कितनी मुसीबतें आती हैं इंसान को मजबूत बनना चाहिए। जिंदगी को खत्म करना न जाने कहां की समझदारी है। बस कर दो यार बहुत हो गया भाई। प्लीज अब बस कर दो। जब चार लोगों के तौर पर खड़े होते हो न तुम तो बहुत बोलते हो। न जाने कहां से जिंदगी के सारे फलसफे और ज्ञान का सागर बन जाते हो। मत किया करो रिजल्ट वाले दिन किसी के घर पर फोन। मत पूछा करो बच्चे के हमेशा नंबर।
उसमें बच्चे के जो भी नंबर आ रहे हैं उसमें आपका कोई लेना-देना नहीं है। अगर वो किसी कंपटीशन की तैयारी कर रहा है और इस वजह से गेप ले रहा है यानी कि 12 वीं के बाद ग्रेजूएशन नहीं कर रहा केवल तैयारी कर रहा है तो उसे वह करने दें। अगर बच्चे को या उसके अभिभावक को लगेगा कि आपकी सलाह उनके काम आ सकती है तो वो आपसे ले लेंगे।
आत्महत्या पर चुप्पी
आत्महत्या पर आपकी राय हम सब वाकई नहीं जानते कि जब कोई इंसान अपनी जिंदगी को खत्म करने की कोशिश करता है तो उसके दिल पर क्या बीतती है। वो स्टेट ऑफ माइंड क्या होता है जब खुद को खत्म करने के अलावा दूसरी कोई तरकीब समझ नहीं आती। इसलिए बेहतर है कि हम और आप इस बारे में कुछ भी न बोलें।
समाधान की दिशा में कदम
जो हम कर सकते हैं वो यह कि हम उस सिचुएशन को पैदा न होने दें जिसकी वजह से मासूम से बच्चे अपने आप को खत्म करने पर मजबूर हो जाते हैं। अब वहीं बात है कि अगर मैं ज्यादा बोलूंगा तो सच में ज्ञान ही देने लग जाउंगा। लेकिन मैंने तो आज से ही तय कर लिया कि अपने आस-पास के बच्चों के न तो नंबर पूछूंगा और न किसी को अपने बच्चे के बताउंगा। बस अपने बेटे को जरुर यह बताउंगा कि अगर वो थोड़ी सी मेहनत कर ले तो एक खूबसूरत सी जिंदगी उसका इंतजार कर रही है।