क्यों बच्चों को स्कूल बंद होने पर हो रही है बोरियत

क्यों बच्चों को स्कूल बंद होने पर हो रही है बोरियत

ज़्यादातर स्कूलों में फाइनल एग्ज़ाम खत्म होने वाले हैं। कुछ स्कूलों में खत्म हो भी चुके हैं। अभी कुछ दिनों के लिए स्कूलों में ब्रेक हुआ है। जिसे लेकर हाल ही में अपने ही परिवार के कुछ बच्चों के मुंह से एक बात सुन मैं चौंक गई। स्कूल से छुट्टी के पहले ही दिन बच्चे कह रहे थे कि हम क्या करें, बोर हो रहे हैं घर पर। आजकल टीवी, फोन और कंप्यूटर पर दिनभर समय बिताने के बाद ये कहना कि हमारे पास करने के लिए कुछ नहीं है। मुझे उनकी बातें सुन कर आश्चर्य हुआ और अपने स्कूल के दिन याद आ गए। जब हम छुट्टियां होने का बेसब्री से इंतज़ार करते थे।

आज भी याद है गर्मियों की छुट्टियां आते ही जैसे हमें पंख लग जाते थे। पढ़ाई की छुट्टी होते ही कोई भी पाबंदी नहीं रहती। जितनी देर चाहो खेलो, कॉमिक्स के किरदारों का साथ और दोस्तों के साथ पूरा दिन। बोनस होता था दादा-दादी या नाना-नानी के घर पूरी छुट्टियां बिताना। छुट्टियों में वो समय पूरा हमारा होता था और क्या करना है उसका निर्णय भी हम खुद ही करते थे। लेकिन बदलते समय के साथ बचपन के इन खूबसूरत दिनों की परिभाषा भी बदलती जा रही है। बच्चों के पास दोस्त कम हैं और घर में भाई-बहन की संख्या भी कम है। ऐसे में उनके पास खेलने के लिए साथी नहीं है। साथ ही दादी और नानी के घरों से भी दूरी बढ़ गई है कि उनके यहां जाने के लिए पेरेंट्स के पास छुट्टियां नहीं हैं। यही नहीं पेरेंट्स बच्चों के मन को समझे बिना छुट्टियों में भी अलग-अलग तरह की एक्टिविटी क्लासेज जॉइन करा देते हैं। उन्हें लगता है इससे बच्चे बोर नहीं होंगे। लेकिन क्लासेज तभी कारगर हैं जब बच्चे का खुद का मन हो। फिर छुट्टी में किसी भी तरह की क्लास प्रेशर ही है। ज़रा अपने बचपन को याद करें और अपने बच्चों को अपने बचपन वाली बेफिक्री भरे दिनों की छुट्टियां मनाने का तोहफा दे सकते हैं।

बच्चों से शेयर करें अपने बचपन की छुट्टियों के किस्से

अगर आपका बच्चा बोर होने की बात कर रहा है, तो उसे अपने दिनों की बातें बताकर उत्साहित कर सकते हैं। ऐसा तो नहीं होगा कि आस-पास कोई उसका दोस्त ही न हो। उसे दोस्तों के साथ इंडोर गेम खेलने के साथ, सुबह-शाम बाहर जाकर खेलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। अगर घर में भाई-बहन हैं तो उनके साथ खेलने या कोई भी एक्टिविटी करने को प्रेरित करें। कैसे हम पहले घर पर खाना बनाने के खेल से लेकर कैरम, लूडो, गुट्टे जैसे गेम खेलते थे और समय का पता ही नहीं चलता था। हां आजकल के बच्चों की रुचि थोड़ा अलग है तो उन्हें उनके हिसाब से काम करने दें।

छुट्टियों में ग्रैंड पेरेंट्स या करीबी रिश्तेदारों के हों साथ

स्कूलों में छुट्टी होने के बाद बच्चों को व्यस्त करने के लिए अलग-अलग क्लासेज जॉइन कराने की जगह ग्रैंड पेरेंट या करीबी रिश्तेदारों के पास मिलने जाने का प्लान बना सकते हैं। ग्रैंड पेरेंट्स के साथ समय बिताने और उनके अनुभवों से जीवन के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिलता है। उन्हें पारिवारिक व नैतिक मूल्यों की भी समझ आती है। यही नहीं अपने ग्रैंड पैरेंट्स जब अपने जीवन से जुड़ी बातें शेयर करते हैं तो बच्चे विपरीत परिस्थितियों में ढलना भी सीखते हैं। आजकल ज़्यादातर न्यूक्लियर फैमिली होने से बच्चों को भावनात्मक रूप से मजबूत और दृढ़ बनाने में ग्रैंड पेरेंट्स के साथ बिताया हुआ समय मददगार साबित होता है। बच्चों को उनके कजिंस के साथ भी समय बिताने का मौका छुट्टियों में दें। इससे बच्चों को भावनात्मक विकास भी होगा।

कभी-कभी बोर होना भी ज़रूरी है

भले ही बच्चों के मुंह से बोर होने की बात सुन मुझे अजीब लगा। जिसकी वजह से ये ख्याल आया कि शायद यही वजह है कि पेरेंट्स बच्चों को एक्टिविटी क्लासेज के जरिए बिजी रखते हैं। लेकिन बच्चों को हर समय एंगेज रखने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि अगर कभी दिमाग खाली ही नहीं होगा तो वे ये नहीं सीख पाएंगे कि उन्हें कब और क्या करना है। जब करने के लिए कुछ नहीं होगा तो वे खुद ढूंढने की कोशिश करेंगे कि क्या करें। इससे उनकी निर्णय लेने की क्षमता बढ़ेगी। इसलिए कभी-कभी बोर होना भी ज़रूरी है।

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