ग्लोबल फुटप्रिंट पर राजस्थानी महक घेवर ने बनाई अपनी पहचान

ग्लोबल फुटप्रिंट पर राजस्थानी महक घेवर ने बनाई अपनी पहचान

राजस्थान के ज़ायके की अपनी एक अलग पहचान है। चाहे दाल बाटी चूरमा हो, कैर-सांगरी की सब्जी, लाल मांस, मिर्च के टिपारे, लहसुन की चटनी अगर आप कभी न कभी राजस्थान आए हैं या राजस्थान की महक के बारे में सुना होगा तो आपने इस स्वाद को भी चखा होगा। ऐसा ही स्वाद से भरपूर और परंपराओं से भरी इस माटी की एक पारंपरिक मिठाई है घेवर। जो वैसे तो अब साल भर ही मिलता है लेकिन सावन में इसके स्वाद का अपना एक अलग ही आनंद है। लेकिन अब इसी पारंपरिक मिठाई ने ग्लोबल लेवल पर अपना एक सिग्नेचर छोड़ दिया है।

ऐसे मिली पहचान

हुआ यूं कि ऑस्ट्रेलिया के मास्टरशेफ में एक प्रतियोगी ने इसे बनाया दीपेंद्र छिब्बड़ ने इसे बनाया और प्रतियोगिता के जजों ने न केवल इसे एप्रिशिएट किया बल्कि यह "बॉस रेसिपी" का खिताब भी अपने नाम करने में कामयाब रहीं। जज हैरान रह गए जब उन्हें इसके प्रोसेस के बारे में पता चला कि किस तरह एक बर्फ की मानिंद ठंडे मैदे के बैटर को बड़ी ही कारीगरी से गर्म तेल में आहिस्ता-आहिस्ता डाला जाता है और वह एक प्रॉपर शेप में जाली का आकार लेता है।

वक्त भी है, मौका भी है, दस्तूर भी

इस वक्त ग्लोबल लेवल पर जो पहचान मिली है, इसे एक परफेक्ट टाइमिंग कहा जाएगा तो गलत नहीं होगा। दीपेंद्र इस शो में इस वक्त टॉप फोर में अपनी जगह बना चुकी हैं। इस वक्त राजस्थान में खासकर घेवर सौगात के तौर पर देने और खाने की परंपरा है। तीज और रक्षाबंधन ऐसे दो त्योहार हैं जब राजस्थान में मिठाई के नाम पर घेवर खाने की परंपरा है। इस पहचान ने इस बात को साबित किया है कि अगर आप परंपराओं को, पारंपरिक स्वाद को थाम कर रखते हैं तो आप पिछड़ते नहीं हैं, बल्कि मजबूती के साथ आगे बढ़ते हैं। घेवर में सिर्फ स्वाद का कमाल नहीं है, इसके साथ संस्कृति का भी एक नाता है। कभी राजस्थान के राजघराने की रसोइयों में बनने वाला घेवर राजस्थान के साथ-साथ ब्रज क्षेत्रों में भी पसंद किया जाता है।

यह सीखने और समझने की बात है

अगर राजस्थान के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो राजस्थान निरंतर उन्नति कर रहा है। यहां पर अब ग्लोबल लेवल पर अपनी पहचान बना चुके जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन हर साल बहुत सफलता के साथ हो रहा है। वहीं साल 2024 में हुए फिल्म इंडस्ट्री के जाने-माने अवॉर्ड आईफा का भी सफलतापूर्वक आयोजन यहां हुआ। लेकिन इस नए की चकाचौंध में राजस्थान की माटी से जुड़े पर्व और मेलों में कोई कमी नहीं आई। यहां सावन के महीने में होने वाले तीज उत्सव में केवल स्थानीय लोग हिस्सा नहीं लेते बल्कि पर्यटक भी इस परंपरा की जीवंतता को देखने भारी संख्या में जयपुर पहुंचते हैं। यह बात सीखने-समझने की है और बहुत गहरी है कि अगर आप संस्कृति से जुड़े होंगे तो ग्लोबल लेवल पर आप पहचान बना सकते हैं, जैसे कि राजस्थान ने बनाई।

यह समझने की बात है

अगर हम घेवर के इंग्रीडिएंट्स की बात करें तो समझ सकते हैं कि यह जिन चीजों से बनता है, वे कोई फैंसी नहीं हैं। कुकिंग रील्स में भी इस समय घेवर का ट्रेंड बना हुआ है। हालांकि कुछ फूड इंफ्लुएंसर इसे तेल में बना रहे हैं, लेकिन राजस्थान में मीठा खासतौर से देसी घी में ही बनाया जाता है। घी में आकार मिलने के बाद इस पर चाशनी डाली जाती है और ऊपर से इसे रबड़ी और ड्राई फ्रूट से सजाया जाता है। यानी कि इसे बनाने के लिए आपको कोई बहुत महंगे सामान नहीं चाहिए, लेकिन घेवर की जाली बनाना आसान नहीं और यही कला इसे खास बनाती है। जाहिर है कि मास्टरशेफ ऑस्ट्रेलिया एक बड़ा शो है। यहां मेपल सिरप में बनी हुई बहुत सी कुज़ींस भी बनी होंगी, लेकिन इस शो में घेवर का बनना और उसे एप्रिशिएशन मिलना राजस्थान और भारत के लिए गर्व का विषय है। घेवर राजस्थान की संस्कृति में ऐसे रमा है कि आप सावन की कल्पना घेवर के बिना कर ही नहीं सकते।

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