लो भई, हो गई जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में कंट्रोवर्सी

लो भई, हो गई जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में कंट्रोवर्सी

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में हर साल कुछ ना कुछ कंट्रोवर्सी हो ही जाती है। कभी किसी विवादस्पद लेखक के शामिल होने को लेकर, तो कभी किसी बयान पर। इस बार की बात करें तो जेएलएफ के दूसरे दिन चार बाग में हो रहे सेशन 'मैमोरीज़ फ्रॉम द स्क्रीन एंड स्टेज' में शुरुआत में तो माहौल नर्म-गर्म सा देखने को मिल रहा था। इस सेशन में वरिष्ठ थिएटर आर्टिस्ट एमके रैना, इला अरुण, अंजुला बेदी थे और इस सेशन को असद लालजी मॉडरेट कर रहे थे।

इस सेशन के लिए इला अरुण थोड़ी ज्यादा भावुक थीं। वे अपनी बुक 'परदे के पीछे' को लेकर आई थीं और इसके साथ काफी एक्साइटेड भी नजर आ रही थीं, क्योंकि जयपुर उनका अपना शहर है। जाहिर है, जब इंसान अपने शहर में होता है, तो उसका भावुक हो जाना लाज़मी है। सेशन के दौरान वो अपनी किताब के बारे में कम और अपनी ज़िंदगी के क़िस्सों को ज्यादा सुनाती नजर आईं। ऐसे में कूल और कंपोज़्ड एमके रैना इरिटेट नजर आए और उन्होंने कई बार उन्हें टोकने की कोशिश की।

लेकिन हद तो तब हो गई जब सेशन में इला अरुण ने अपने प्ले के कुछ डायलॉग्स बोलने शुरू कर दिए। वह सेशन के दौरान उठकर खड़ी हो गईं और डायलॉग डिलीवरी करने लगीं। यह देख एमके रैना सेशन के बीच से ही उठकर चले गए।

"दिस इज़ वेरी अनॉइंग"

सेशन के दौरान पैनलिस्ट का आपस में किसी बात को लेकर एकमत ना होना या अलग-अलग राय रखना आम बात होती है, लेकिन शायद यह पहला मौका था जब पैनल का कोई सदस्य यों बीच में सेशन को छोड़कर चला गया हो। जैसे ही एमके रैना सेशन से बाहर चले गए, इला अरुण ने मॉडरेटर से उनके जाने के बारे में पूछा और कहा, "दिस इज़ वेरी अनॉइंग।" इस पर मॉडरेटर असद लालजी ने जवाब दिया, "वी विल डिस्कस इट लेटर।"

"यू कम टू बुक!"

सेशन की शुरुआत में एमके रैना ने थिएटर के बारे में और 'सहमत ग्रुप' के बारे में बातचीत की। वहीं, जब इला अरुण की ओपिनियन देने की बारी आई, तो उन्होंने अपने गाने 'चोली के पीछे क्या है' से शुरुआत की। वह बताने लगीं कि उस दौर में इस गाने का कैसा करिश्मा था और सुभाष घई के बारे में भी बोलने लगीं। तब मॉडरेटर को उन्हें बीच में टोककर कहना पड़ा, "यू कम टू बुक!" यह सुनकर एमके रैना मुस्कुरा दिए और इला अरुण अपनी बुक के बारे में बताने लगीं कि कैसे उन्हें इस बुक को लिखने का आइडिया आया।

वर्सेटाइल पर्सनैलिटी हैं इला

इला अरुण एक एंटरटेनर हैं। सेशन के दौरान वह जयपुर और अपने स्कूल की यादें भी शेयर कर रही थीं। जब उनसे पूछा गया कि "आपने एक बार कहा था कि थिएटर आपके लिए पूजा है?" तब भी उन्होंने सवाल से हटकर जवाब देना शुरू कर दिया। इस पर एमके रैना ने उन्हें सवाल याद दिलाया, तो इला बोलीं, "हाँ, हाँ, मैं जवाब दे रही हूँ।" इसके बाद उन्होंने बताया कि थिएटर उनके लिए पूजा क्यों है।

कुछ और हो गया...

जेएलएफ का यह मंच लिटरेचर का है, लेकिन इला अरुण एक फोक सिंगर भी हैं। सेशन के अंत में जब क्वेश्चन-आंसर सेशन हुआ, तब ऑडियंस में से किसी ने रेशम का रूमाल गाने की फरमाइश कर दी। पहले तो उन्होंने बैक स्टेज पर गाना बजाने को कहा, लेकिन मॉडरेटर थोड़े ना-नुकुर कर रहे थे। लेकिन इला तो इला हैं, वह कहाँ मानने वाली थीं! गाना बजा और इला अरुण ने भी गाना शुरू कर दिया। इस बीच उन्हें एमके रैना याद आए। वो कहने लगीं, "अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है?" फिर खुद ही हंसते हुए बोलीं, "मैं हमेशा से उन्हें जानती हूँ, उनको गुस्सा थोड़ा जल्दी आ जाता है!"

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