ज़िंदगी में फेलियर को कैसे डील करना है यह आप इम्तियाज़ अली से सीख सकते हैं

ज़िंदगी में फेलियर को कैसे डील करना है यह आप इम्तियाज़ अली से सीख सकते हैं

जेएलएफ का हर दिन अपने आप में ख़ास और बहुत सीख समेटे होता है। 3 फरवरी का दिन भी कुछ ऐसा ही था जब राइटर और डायरेक्टर इम्तियाज़ अली ने जब वी मेट सेशन में अपनी ज़िंदगी और अपनी फ़िल्मों के सफर को साझा किया। सेशन में उन्हें सुनने के लिए भीड़ बेताब थी। उन्होंने कहा कि जनता का शुक्रिया जो उन्हें इतनी मोहब्बत करती है। "मेरा काम है काम करना, जब आप लोग एप्रिशिएट करते हैं तो बहुत अच्छा लगता है।"

आप सिर्फ़ कामयाब नहीं हो सकते

इम्तियाज़ अली वो डायरेक्टर हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वो वक़्त से काफी आगे चल रहे हैं। शायद उन्होंने अपनी ज़िंदगी को किसी स्टारडम की चादर से नहीं लपेट रखा है। वो बेबाकी से वो कहते और करते हैं जो उन्हें पसंद होता है। उन्होंने कहा कि जब हम स्कूल में होते हैं, उस वक्त हर बच्चा चाहता है कि उसकी इमेज टीचर के सामने अच्छी बनी रहे और कम से कम अगर वह टॉप ना कर पाए तो फेल भी ना हो। लेकिन ज़िंदगी तो साहब ज़िंदगी है। यहां अगर पास हो रहे हो तभी फेल भी होते हो। "मैंने इस नाकामयाबी का मज़ा बहुत जल्द चख लिया था। मैं भी फेल हुआ था 9वीं क्लास में।" इस वक़्त जितना आसान लग रहा है बताना, उस वक़्त उतना मुश्किल था डील करना। "लेकिन भई, जब फेल हो ही गए थे तो उससे डील करने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं था।"

हर चीज़ के पीछे सीख छिपी होती है

"उस वक़्त फेल होना और उससे ओवरकम करना बिल्कुल आसान नहीं था। वो जो डीलिंग मैंने सीखी, वो लर्निंग मेरी फ़िल्मी करिअर में बहुत काम आ रही है।" आप सभी जानते हैं कि फ़िल्म बनाना एक कला है। "मेरी फ़िल्में बहुत सरल होती हैं, जो लोगों को समझ में आती हैं। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि हम बहुत मेहनत करते हैं, इसके बावजूद भी ऑडियंस और फैंस को फ़िल्म पसंद नहीं आती।" इस चीज़ को स्वीकार करने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं होता। यही फेलियर है, इसे डील करना मैं अपने स्कूल के दिनों में 9वीं क्लास में फेल होने की वजह से सीखा था।

आपको मौके ढूंढने पड़ेंगे

"अगर आप मेहनती होते हैं और अगर आप दिल से कोई चीज़ करना चाहते हो तो वो आपको मिल ही जाती है।" सेशन के दौरान वो बोले कि "मैं आपकी या किसी भी हिंदुस्तानी की बात करूं तो हम हिंदुस्तानियों को फ़िल्में देखने का एक शौक़ था।" मुझे भी बचपन में जाकर सिनेमा देखने का बहुत शौक था। "उस दौर में बड़ा हुआ हूं जब फ़िल्मों को लेकर लोगों को एक अलग लेवल का क्रेज़ होता था। लोग घंटों लाइनों में खड़े रहकर टिकट लिया करते थे।" सीन में हीरो की एंट्री, लोगों का तालियां बजाना, हूटिंग करना - वो माहौल, वो क्रेज़, वो हीरोगिरी कमाल थी। "मैं लिखने का शौकीन था। फिर थिएटर में आया, इस तरह फ़िल्मों की दुनिया से मेरी डोर जुड़ती चली गई।"

अमीर खुसरो पर बायोपिक

"मैं जानता हूं कि लोग जब वी मेट को बहुत पसंद करते हैं। करीना का गीत का वो किरदार यादगार हो चुका है। करीना ने उस फ़िल्म में कमाल किया था। उस वक़्त उस किरदार से बहुत सी लड़कियों ने अपने आप को जोड़कर देखा। लेकिन मैं इस फ़िल्म का कोई सीक्वल नहीं बनाना चाहता।" मेरे ऑडियंस इस फ़िल्म को पसंद करते हैं। वो इस फ़िल्म को आज भी याद करते हैं, मेरे लिए इतना काफी है। इसके अलावा एक और बात कहता हूं कि बायोपिक में भी मुझे कोई इंट्रेस्ट नहीं है। लेकिन अगर कभी बायोपिक बनाई, तो वो अमीर खुसरो पर होगी।

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