फिलॉनथ्रोपिस्ट और ऑथर सुधा मूर्ति चाहें तो एक लग्जीरियस लाइफ जी सकती हैं। वे राज्यसभा की मेंबर हैं, इसके अलावा वे इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति की वाइफ हैं। लेकिन सभी जानते हैं कि वे बैंगलोर में कितनी सिंपल जिंदगी गुजारती हैं। जेएलएफ में उन्होंने अपने सेशन 'द चाइल्ड विदिन' में बच्चों की बुक्स लिखने, रिसर्च करने और अपनी ज़िंदगी के अनोखे अनुभवों पर चर्चा की।
मिस्टर मूर्ति से पहले है गोपी
सभी जानते हैं कि सुधा मूर्ति अपने पेट डॉग गोपी से कितनी क्लोज़ हैं। जेएलएफ के एक सेशन में जब मॉडरेटर मीरू गोखले ने उनसे पूछा कि पहले गोपी की बात करें या मिस्टर मूर्ति की, तो हंसते हुए एक शरारती अंदाज़ में वे बोलीं, "पहले गोपी की!" वहीं एक छोटे से बच्चे ने जब उनसे पूछा कि "आप गोपी से कितना प्यार करती हैं?" तो वे कहने लगीं, "वो मेरी हार्टबीट है।" आपको बता दें कि सुधा मूर्ति बच्चों के लिए बुक्स लिखने वाली एक जानी-मानी ऑथर हैं। उन्होंने गोपी को समर्पित बुक्स की एक सीरीज़ लिखी है, जिसका नाम गोपी डायरीज़ है। इसमें गोपी की ज़ुबानी कहानियों को लिखा गया है।
अमल में भी लाती हैं सिम्पलिसिटी
सुधा मूर्ति की ज़िंदगी वाकई एक इंस्पिरेशन है लोगों के लिए। वे कहती हैं, "अगर आप खुश रहना चाहते हैं तो अपने आप को सिंपल रखें।" सिम्पलिसिटी का यह अंदाज़ उनके सेशन में भी नज़र आ रहा था। जब क्वेश्चन-आंसर सेशन में उन्होंने एक लड़की की साड़ी की तारीफ की और उससे उसके कलर के बारे में पूछा, तो वो लड़की बहुत खुश हो गई और उसने कहा कि मैं इस बात को ज़िंदगी भर याद रखूंगी।" इस पर तपाक से सुधा मूर्ति ने कहा, "ओह हो! मुझे लगा कि आप यह साड़ी मुझे गिफ्ट देने वाली हैं!
एआई पर जवाब
ऐसा ही एक सवाल जब ऑडियंस में से एआई को लेकर आया, तो उन्होंने कहा कि "एआई एक बेहतरीन टूल है। यह बहुत एफिशिएंट है, लेकिन यह अहसास को शब्द नहीं दे सकता। आपके दिल में आपकी मां के लिए जो भावनाएं हैं, वो उन्हें नहीं बता सकता। जब आप खुश होते हो तो रोते हो, जब आपको कोई तकलीफ होती है तो आप रोते हो। इन अहसासों को एआई नहीं समझ सकता।"
फेवरेट स्टोरी
मीरू गोखले ने जब उनसे पूछा कि उनकी फेवरेट स्टोरी कौन सी है, तो उन्होंने कहा कि "मां को हर बच्चा पसंद होता है, मैं कैसे बताऊं कि मेरी फेवरेट कौन सी है?" फिर उन्होंने कहा, "मुझे माइज़र यानी कंजूसी वाली स्टोरी अच्छी लगती है। ऐसी मैंने चार-पांच स्टोरी लिखी हैं। इसमें कोकोनट बर्फी मेरी फेवरेट है।"
इसमें एक कंजूस आदमी कोकोनट पाउडर लेने जाता है, जो बाज़ार में 10 रुपए का मिलता है। वह दुकानदार से पूछता है कि "इससे भी सस्ता मिलेगा क्या?" दुकानदार बताता है कि थोड़ा आगे बढ़ने पर आपको 8 रुपए का मिल जाएगा। इस तरह वह सस्ते के चक्कर में नारियल के पेड़ तक चला जाता है, ताकि उसे फ्री में नारियल मिल जाए। लेकिन वह पेड़ पर हवा में लटक जाता है और आखिर में अपनी जान बचाने के लिए उसे 1 लाख रुपए देने पड़ते हैं। वह सोचता है कि "इससे अच्छा तो मैं 10 रुपए का नारियल ही ले लेता!"
वे कहने लगीं, "मुझे हर वो स्टोरी अच्छी लगती है, जिसमें फन हो, सीख हो और जिसे पढ़ने के दौरान रीडर एंजॉय करे।"
मैं खुश हूं
वे कहने लगीं, "मैं बच्चों की चीजों को लिखकर बहुत खुश रहती हूं। मैं मानती हूं कि आप ज़िंदगी को जितना आसान बनाते हैं, आप उतना ही ज़्यादा खुश और बिना तनाव के रह पाते हैं। मुझे ही देख लें, अगर कोई चोर मेरे घर पर आएगा भी, तो उसे क्या मिलेगा? किताबें… जो चोर के किसी काम की नहीं होंगी और मेरी पुरानी साड़ियां, जिन्हें आजकल कोई पहनता नहीं!"
"वे लोग जो अपने घरों में बहुत महंगी चीजें रखते हैं, वे इसलिए नहीं सो पाते कि कहीं कुछ चोरी न हो जाए। आप याद रखिए कि जटिलताएं आपको तनाव देती हैं।"
प्रॉब्लम को छोटा कर दो
वे कहती हैं, "हनुमान जी की माइथोलॉजिकल कहानी तो हम सभी को याद है, जिसमें वे संजीवनी बूटी लेने हिमालय पर्वत गए थे। उन्हें उस बूटी के बारे में नहीं पता था, बस इरादा कर लिया। चूंकि उनके पास एक वरदान था और उसी की वजह से उन्होंने हिमालय पर्वत को अपने हाथ में ले लिया। यानी कि प्रॉब्लम को छोटा कर खुद को बड़ा कर लिया!"
"मैं भी इसी फिलॉसफी को मानती हूं। अब जैसे मैं अपनी बात बताऊं – मेरे घुटने में दर्द था, मैंने मेडिसिन ले ली। रात को पैर की मालिश कर ली। यानी कि प्रॉब्लम छोटी हो गई। फंडा यह है कि आप प्रॉब्लम पर हावी हो जाओ!"
समझने वाली बात है
सुधा मूर्ति के विचार कितने स्पष्ट हैं और वे खुद को कोई लेजेंड भी नहीं समझतीं। जब उनसे आखिरी सवाल पूछा गया कि "आज से चालीस साल बाद आप अपने रीडर्स को किस तरह से देखती हैं? आप क्या लेगेसी देंगी?" तब उन्होंने कहा कि मैं तो बहुत छोटी सी, मामूली सी इंसान हूं। मेरी कोई लेगेसी नहीं है। मैं आज के लोगों के लिए रही हूं। एक छोटी सी ज़िंदगी है मेरी। वाकई, यह बात तो बहुत गहराई में समझने वाली है।